हाईकोर्ट ने रिकवरी को मनमाने रवैये व नाजायज ठहराया, वित्तीय लाभ ब्याज सहित देने के दिए आदेश

हाईकोर्ट ने रिकवरी को मनमाने रवैये व नाजायज ठहराया, वित्तीय लाभ ब्याज सहित देने के दिए आदेश

शिमला
हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में सरकारी विभागों के कर्मचारियों के वित्तीय लाभ अदालत में केस दायर करने से पहले के 3 वर्षों तक प्रतिबंधित करने के मनमाने रवैये को गैरकानूनी ठहराया है। कोर्ट ने अपने फैसले में उपरोक्त कानूनी स्थिति स्पष्ट करते हुए न केवल रिकवरी को नाजायज ठहराया, बल्कि बचा हुआ एरियर भी ब्याज सहित देने के आदेश दिए।

न्यायाधीश संदीप शर्मा ने बालक राम की याचिका को स्वीकारते हुए स्पष्ट किया है कि जब अदालत किसी कर्मचारी के वित्तीय लाभ प्रतिबंधित नहीं करती तो विभाग स्वयं सुप्रीम कोर्ट के जय देव गुप्ता मामले के फैसले को मनमाने ढंग से लागू कर, उसके वित्तीय लाभ प्रतिबंधित नहीं कर सकते। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जय देव गुप्ता में दिए फैसले का आधार केवल व्यक्तिगत है न कि व्यापक है।
इसलिए हर मामले में इस फैसले को अपने स्तर पर लागू करना विभाग की ओर से गैरकानूनी है। कोर्ट ने फैसले में कहा कि यदि विभाग को वित्तीय लाभ देने में कोई आपत्ति हो तो वह मामले में पैरवी के दौरान उक्त फैसले का हवाला दे सकते हैं। प्रार्थी 1992 में वन विभाग में दिहाड़ीदार माली के तौर पर लगा था।
लगातार 10 वर्षों से दिहाड़ी पर ही काम करने के पश्चात उसे जब वर्कचार्ज दर्जा नहीं दिया तो उसने 2010 में अदालत का दरवाजा खटखटाया। हाईकोर्ट ने विभाग को मूल राज उपाध्याय में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के दृष्टिगत फैसला लेने के आदेश दिए। नतीजतन, विभाग ने फैसला लिया और प्रार्थी को 2002 से वर्क चार्ज देने के आदेश जारी किए।

उसे वित्तीय लाभ उसी समय से देने के लिए वित्त विभाग ने भी मंजूरी दे दी। कुछ किस्तें देने के बाद विभाग ने यह कहते हुए रिकवरी नोटिस निकाला कि उसे जय देव गुप्ता के फैसले के अनुसार केवल केस करने के तीन साल पहले तक के ही वित्तीय लाभ दिए जाने थे। प्रार्थी ने विभाग की इस रिकवरी को कोर्ट में चुनौती दी थी।

 

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