पैतृक संपत्ति की वसीयत करने से रोकने को कोई कानून नहीं: हाईकोर्ट

शिमला
No law for prohibiting willful possession of ancestral property in Himachal
हिमाचल हाईकोर्ट ने पैतृक संपत्ति की वसीयत से जुड़े विवाद में स्पष्ट किया है कि ऐसा कोई कानून नहीं है जो किसी को पैतृक संपत्ति की वसीयत करने से रोके। न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान ने निचली अदालतों के फैसलों को उचित ठहराते हुए वादी की अपील को खारिज कर दिया।

अपीलकर्ता वादी राम सिंह ने प्रतिवादी चरण सिंह के खिलाफ दीवानी मुकदमा कायम कर सभी पक्षकारों को विवादित भूमि का संयुक्त मालिक घोषित करने की गुहार लगाई थी। वादी ने पैतृक संपत्ति की वसीयत को निरस्त करने की गुहार भी लगाई थी।

वादी का कहना था कि वह और उसके पिता विवादित भूमि की वसीयत नहीं कर सकते थे क्योंकि वह एक पैतृक संपत्ति है। वादी ने वसीयत की कानूनी वैधता को भी चुनौती दी थी।

प्रतिवादी के अनुसार वसीयत कर्ता चुरू उर्फ चूड़ सिंह ने वादी की शादी के लिए कर्ज लिया था जिसे लौटाने के लिए वादी ने अपने पिता की कोई मदद नहीं की। यह रकम प्रतिवादी ने ही चुकाई।

इतना ही नहीं शादी के बाद वादी अपने पिता से अलग रहने लगा था और उसने अपने पिता का कभी हालचाल जानने की जहमत तक नहीं उठाई। दूसरी तरफ  प्रतिवादी ने वसीयतकर्ता का न केवल तन-मन से ख्याल रखा बल्कि खेतीबाड़ी में भी उनका भरपूर साथ दिया।

वसीयत कर्ता ने अपनी दो तिहाई भूमि वसीयत के माध्यम से प्रतिवादी के नाम कर दी थी। अधीनस्थ न्यायालयों ने वादी के दावे को खारिज कर दिया था, जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी।

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