ग्लेशियरों की संजीवनी है ताजा हिमपात

सैंज (कुल्लू)। ताजा हिमपात को पर्यावरणविद ग्लेशियरों के लिए वरदान मान रहेे हैं। हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि इससे नए ग्लेशियर बनेंगे यह कहना अभी जल्दबाजी होगी लेकिन पुराने ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार इससे कम जरूर होगी। यह हिमपात ग्लेशियरों के लिए सुरक्षा कवच का काम करेगा।
ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। लेकिन ताजा बर्फबारी से इन्हें संजीवनी जरूर मिली है। कुल्लू और लाहौल-स्पीति की ऊंची पहाड़ियों में कई जगह दो से तीन फुट तक बर्फ गिरने से पहाड़ लकदक हो चुके हैं। नवंबर माह में गिरी बर्फ तापमान कम होने के कारण जम जाती है। इस कारण ग्लेशियरों को सिकुड़ने में यह काफी हद तक मदद करेगी।
श्रीखंड महादेव, पाप-धर्म की चोटी, थिहणी जोत, हंसकुंड, तीर्थ जोत, लांबालांबारी, ककटी ग्लेशियर, डिलबू पीक, कुगती जोत, गंग स्टाग, कांगला, हनुमान टिब्बा, चंद्राखणी, खीरगंगा और रक्तिराहला आदि जोत पर भारी बर्फबारी हुई है। वहां पहले से मौजूद ग्लेशियरों के पिघल कर टूटने की रफ्तार में इससे कमी आएगी। पश्चिमी विक्षोभ के चलते इस बार ग्यारह सालों बाद नवंबर माह में हिमालय की ऊंची चोटियों पर भारी बर्फबारी हुई है। पर्यावरण विशेषज्ञों के मुताबिक ग्लोबल वार्मिंग से ग्लेशियर 17 से 21 मीटर की रफ्तार से प्रतिवर्ष सिकुड़ रहे हैं। इससे समुद्र के जलस्तर में भी उतार चढ़ाव देखने को मिला है। मौसम चक्र के इस बदलाव से पर्यावरण संतुलन को खतरा है।

सुरक्षा दीवार का काम करेगी बर्फ
कुल्लू जिला के मौहल में स्थित जीबी पंत हिमालयन पर्यावरण संस्थान में तैनात वरिष्ठ पर्यावरण वैज्ञानिक डा. जेसी कुनियाल कई सालों से ग्लेशियरों पर शोध कर रहे हैं। वह कहते हैं कि ताजा हिमपात से ग्लेशियरों को संजीवनी मिली है। यह कहना जल्दबाजी होगा कि इस हिमपात से नए ग्लेशियर बनेंगे। लेकिन बर्फ के ये फाहे ग्लेशियरों को सिकुड़ने से बचाने के लिए सुरक्षा दीवार का काम करेंगे।

प्रकृति खुद आई है आगे
प्रसिद्ध पर्यावरणविद किशन लाल ने कहा कि पर्यावरण संतुलन साधने के लिए इस बार प्रकृति खुद आगे आई है। हर साल ग्लेशियरों का सिकुड़ना प्रकृति तथा लोगों के लिए घातक है। इसके लिए लोगों को अपने स्तर भी प्रयास करने होंगे।

Related posts

Leave a Comment