हिमाचल सरकार चार साल में नहीं दे सकी मेधावियों को लैपटॉप

हिमाचल सरकार चार साल में नहीं दे सकी मेधावियों को लैपटॉप

शिमला
हिमाचल प्रदेश के स्कूल और कॉलेजों के साढ़े 19 हजार मेधावियों को चार साल के कार्यकाल पूरा करने वाली हिमाचल सरकार अभी तक लैपटॉप नहीं दे सकी है। शैक्षणिक सत्र 2018-19 और 2019-20 के विद्यार्थी आज भी लैपटॉप का इंतजार कर रहे हैं। पहले दो विभागों की लड़ाई से खरीद में देरी हुई। अब वित्त विभाग में प्रस्ताव फंस गया है। खरीद प्रक्रिया में सिर्फ ही कंपनी के पात्र पाए जाने के चलते मंत्रिमंडल की मंजूरी लेना जरूरी है। खरीद प्रक्रिया में चार कंपनियों ने आवेदन किए थे। दो कंपनियां पहले चरण में ही बाहर हो गईं थी। शेष बची दो कंपनियों में से एक कंपनी चीन में पंजीकृत होने के चलते खरीद प्रक्रिया से बाहर हो गई। ऐसे में अब सिर्फ ही कंपनी पात्र बची है। जयराम सरकार के कार्यकाल में स्कूल और कॉलेजों के मेधावी लैपटॉप को तरस गए हैं। 

दिसंबर 2017 में प्रदेश की सत्ता में आई जयराम सरकार अभी तक शैक्षणिक सत्र 2018-19 और 2019-20 के साढ़े 19 हजार मेधावियों को लैपटॉप नहीं दे सकी है। बीते चार वर्षों से लैपटॉप की खरीद प्रक्रिया ही जारी है। पूर्व मुख्यमंत्री प्रो. प्रेमकुमार धूमल के कार्यकाल में शुरू हुई मेधावियों को लैपटॉप देने की योजना को जारी रखने या बंद करने को लेकर प्रदेश सरकार साल 2018 अंत तक संशय में रही। फरवरी 2019 में सरकार ने स्कूलों के 8800 और कॉलेजों के 900 मेधावियों के लिए लैपटॉप खरीद करने का फैसला लिया। इलेक्ट्रॉनिक्स कॉरपोरेशन से लैपटॉप खरीद की प्रक्रिया शुरू करवाई गई।

कॉरपोरेशन के साथ विवाद होने के बाद निदेशालय ने वर्ष 2020 में स्वयं लैपटॉप खरीदने का फैसला लिया। वर्ष 2020 में तीन बार शिक्षा विभाग ने जैम पोर्टल के माध्यम से खरीद प्रक्रिया शुरू की, लेकिन किसी भी कंपनी ने इसमें दिलचस्पी नहीं ली। 31 मार्च 2021 को लैपटॉप खरीद का बजट लैप्स होने के बचाने के लिए शिक्षा विभाग ने खरीद के लिए दोबारा इलेक्ट्रॉनिक्स कॉरपोरेशन से टेंडर करवाए। कॉरपोरेशन ने बीते अप्रैल से जुलाई तक पांच बार टेंडर आमंत्रित किए लेकिन कोई कंपनी आगे नहीं आई। 

बीते दिनों चार कंपनियों ने टेंडर प्रक्रिया में भाग लिया। दो कंपनियां पहले ही चरण में प्रक्रिया से बाहर हो गई थीं। दो कंपनियों की जब टेक्निकल बिड खुली तो एक कंपनी चीन में पंजीकृत पाई गई। भारत सरकार ने चीन की कंपनियों से कारोबार नहीं करने का फैसला लिया है। लैंड बॉर्डर लॉ के कारण इस कंपनी को बाहर का रास्ता दिखाया गया। इसके चलते फाइनांशियल बिड में सिर्फ  एक कंपनी बची। अब इस एक ही कंपनी को सप्लाई ऑर्डर देने या ना देने का मामला कैबिनेट में जाएगा।

Related posts