हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिला में इन चार गांव में पहली बार जलेंगे बल्ब, जानिए क्या है पूरा मामला

हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिला में इन चार गांव में पहली बार जलेंगे बल्ब, जानिए क्या है पूरा मामला

न्यूली (कुल्लू)
आजादी के 75 साल बाद आखिरकार 300 ग्रामीणों का इंतजार खत्म होने वाला है। नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्ड लाइफ ने ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क से 11 केवी एचटी ट्रांसमिशन लाइन बिछाने की अनुमति प्रदान की है। राज्य बोर्ड फॉर वाइल्ड लाइफ इसकी अनुमति पहले ही दे चुका है।
कुल्लू के चार गांवों में पहली बार जलेगा बिजली का बल्ब।

हिमाचल प्रदेश के जिला कुल्लू की सैंज तहसील के अति दुर्गम शाक्टी, मरौड़, शुगाड़ और कुटला गांव में पहली बार बिजली का बल्ब जलेगा। आजादी के 75 साल बाद आखिरकार 300 ग्रामीणों का इंतजार खत्म होने वाला है। नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्ड लाइफ ने ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क से 11 केवी एचटी ट्रांसमिशन लाइन बिछाने की अनुमति प्रदान की है। राज्य बोर्ड फॉर वाइल्ड लाइफ इसकी अनुमति पहले ही दे चुका है। अब वन विभाग की मंजूरी का इंतजार है। इसके बाद ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क से होते हुए इन गांवों तक 12.118 किलोमीटर लंबी ट्रांसमिशन लाइन बिछाई जाएगी। बता दें कि यहां के ग्रामीण अभी सोलर लाइट के सहारे ही गुजर बसर कर रहे हैं। बर्फीला इलाका होने के चलते सोलर लाइटें काम नहीं करती हैं। यह लाइटें एक एनजीओ ने 8 साल पहले ही मुहैया करवाई थीं।

सैंज घाटी की ग्राम पंचायत गाड़ापारली के चार गांवों के 40 घर ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क में होने के चलते सदियों से रोशनी से महरूम थे। अब इनके घरों में बिजली के बल्ब टिमटिमाएंगे। बच्चे देर रात तक पढ़ाई कर पाएंगे। मोबाइल की घंटी भी बजेगी। कपड़े इस्त्री कर सकेंगे। इनके जीवन से अंधेरा दूर हो जाएगा। ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क के डीएफओ निशांत मंढोत्रा ने कहा कि पार्क से दुर्गम गांवों केे लिए एचटी ट्रांसमिशन लाइन ले जाने की नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्ड लाइफ से अनुमति प्रदान की गई है। बिजली बोर्ड कुल्लू के अधीक्षण अभियंता संजय कौशल ने कहा कि वन वभाग की मंजूरी का इंतजार है। जैसे ही हरी झंडी मिलती है, बोर्ड बिजली लाइनों को बिछाने का काम शुरू कर देगा। इस पर करीब तीन करोड़ रुपये खर्च होंगे।

रोज 24 किलोमीटर पैदल चलते हैं इन गांवों के लोग
दुर्गम गांव शाक्टी, मरौड़, कुटला और शुगाड़ में ग्रामीण आज भी मूलभूत सुविधाओं से दूर हैं। सड़क न होने से ग्रामीणों को रोज अपने जरूरी कामकाज के लिए 24 किमी पैदल चलना पड़ता है। यहां मात्र आठवीं कक्षा तक स्कूल है। डिस्पेंसरी 20 किमी दूर बाह में है। न्यूली से नैनी तक सड़क है। इसके आगे इन गांवों तक पहुंचने के लिए 24 किमी पैदल जाना पड़ता है। बिजली मिली तो अन्य सुविधाओं की भी आस जग जाएगी।

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