सरकार ने यौन अपराध की शिकार पीड़ित के लिए बनाया हर जिले में वन स्टॉप सेंटर

सरकार ने यौन अपराध की शिकार पीड़ित के लिए बनाया हर जिले में वन स्टॉप सेंटर

शिमला
यौन अपराध की शिकार इन पीड़ितों को सरकार ने हरेक जिले में वन स्टॉप सेंटर बनाया है। राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के आदेशों की अनुपालना में अदालत के समक्ष शपथपत्र दायर किया है।

दुर्भाग्य से हमारे समाज में यौन अपराध की शिकार, विशेष रूप से दुष्कर्म पीड़ित के साथ अपराधी से भी बुरा व्यवहार किया जाता है। पीड़ित निर्दोष होती है और उसके साथ जबरन यौन शोषण किया जाता है। समाज पीड़ित के साथ सहानुभूति रखने के बजाय उसके साथ अछूत जैसा व्यवहार करना शुरू कर देता है। यौन अपराध की शिकार इन पीड़ितों को सरकार ने हरेक जिले में वन स्टॉप सेंटर बनाया है। राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के आदेशों की अनुपालना में अदालत के समक्ष शपथपत्र दायर किया है। शीर्ष अदालत के आदेशों की अनुपालना में हाईकोर्ट ने जनहित याचिका दायर की थी। हाईकोर्ट के समय-समय पर पारित आदेशों की अनुपालना करते हुए सरकार ने यह पहल की है। सुप्रीम कोर्ट ने भारत के सभी प्रदेशों और केंद्र शासित प्रदेशों में वन स्टॉप सेंटर स्थापित करने के आदेश दिए थे।

सुप्रीम कोर्ट ने आदेशों में कहा था कि दुष्कर्म पीड़ित के साथ अछूत जैसा व्यवहार किया जाता है। उसे समाज से बहिष्कृत किया जाता है। कई बार उसके परिवार वाले भी उसे घर में रखने से मना कर देते हैं। कड़वी सच्चाई तो यह है कि कई बार बलात्कार के मामले पीड़ित के परिवार वाले तथाकथित सम्मान की झूठी धारणाओं के कारण दर्ज नहीं करवाते हैं। बात यहीं खत्म नहीं होती, मामला दर्ज होने के बाद पुलिस भी अकसर पीड़ित से आरोपी की तरह सवाल करती है। अदालत में पीड़ित को एक कठोर जिरह के अधीन गुजरना पड़ता है। इसमें पीड़ित की नैतिकता और चरित्र के बारे में बहुत सारे सवाल उठाए जाते हैं। शीर्ष अदालत ने अभियोजन पक्ष से आशा की थी कि पीड़ित की जिरह एक निश्चित स्तर की शालीनता और सम्मान के साथ की जानी चाहिए।

शीर्ष अदालत ने यौन अपराध की शिकार पीड़ित की नैतिकता और चरित्र के सम्मान में आदेश दिए थे कि कोई भी व्यक्ति प्रिंट या इलेक्ट्रानिक में पीड़ित का नाम प्रकाशित नहीं कर सकता है। उन मामलों में जहां पीड़ित की मृत्यु हो गई है या दिमाग खराब है, उसका नाम या उसकी पहचान नहीं होनी चाहिए। यौन अपराध से जुड़े मामलों पर दर्ज हुई प्राथमिकी ऑनलाइन न हो। नाबालिग पीड़ितों की सुनवाई विशेष अदालत में हो। इन आदेशों की अनुपालना के लिए सुप्रीम कोर्ट ने सभी प्रदेशों के हाईकोर्ट को जिम्मेवार ठहराया था। हिमाचल हाईकोर्ट ने भी सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अनुपालना के लिए जनहित में याचिका दर्ज की है।

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