संविधानिक है सुरक्षा का अधिकार, लेकिन कानूनी कार्रवाई में ढाल नहीं बन सकता

संविधानिक है सुरक्षा का अधिकार, लेकिन कानूनी कार्रवाई में ढाल नहीं बन सकता

चंडीगढ़
अपने पति से अलग होकर प्रेमी के साथ लिव इन में रह रही एक महिला की सुरक्षा से जुड़ी याचिका पर हाईकोर्ट ने फाजिल्का के एसएसपी को सुरक्षा की समीक्षा का आदेश दिया है। हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि सुरक्षा का अधिकार संविधानिक है, लेकिन इसे कानूनी कार्रवाई की स्थिति में ढाल बनाने का प्रयास नहीं करना चाहिए। 

प्रेमी जोड़े ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करते हुए सुरक्षा की मांग की थी। इस मामले में लड़का कुंवारा है और महिला अपनी इच्छा से अपने पति को छोड़कर लिव इन में अपने प्रेमी के साथ रह रही है। महिला ने हाईकोर्ट से अपने ससुराल पक्ष से जान का खतरा बताते हुए जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा की गुहार लगाई है। 

याची ने बताया कि उन्होंने फाजिल्का के एसएसपी को मांगपत्र सौंपते हुए यही मांग की थी, लेकिन उनकी ओर से कोई कार्रवाई नहीं की गई। हाईकोर्ट ने कहा कि न्यायालय का कर्तव्य है कि वह नागरिकों के सांविधानिक अधिकारों की रक्षा करे। संविधान प्रत्येक नागरिक को जीवन तथा स्वतंत्रता का अधिकार देता है। इस जीवन और सुरक्षा के अधिकार की रक्षा करते हुए याचिकाकर्ताओं के रिश्ते की वैधता देखने की जरूरत न्यायालय को नहीं है। ऐसे में इस रिश्ते की वैधता पर गौर किए बिना दोनों की सुरक्षा को लेकर दाखिल मांगपत्र पर फाजिल्का के एसएसपी को निर्णय लेने का आदेश दिया गया है। 

साथ ही हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह आदेश जीवन की रक्षा के लिए जारी किया जा रहा है और यदि दोनों के रिश्तों को लेकर कोई कानूनी कार्रवाई लंबित है तो वह इस आदेश से प्रभावित नहीं होगी। हाईकोर्ट ने कहा कि इस प्रकार के आदेश को कानूनी कार्रवाई में ढाल बनाने की कोशिश नहीं की जानी चाहिए। 

Related posts