लहसुन की फसल तैयार, करोड़ों के कारोबार पर संकट

कुल्लू/खराहल

लहसून की खेती
नकदी फसल लहसुन मई के दूसरे सप्ताह में तैयार होने वाली है, लेकिन कोरोना वायरस के कारण किसान चिंतित हैं। मंडियों में बाहरी आढ़तियों और व्यापारियों की दस्तक न होने से लहसुन पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। मई के दूसरे पखवाड़े में हिमाचल का लहसुन पककर तैयार हो जाता है। यह औसतन 70 से 80 रुपये किलो बिकता है। विदेशों में भी हिमाचली लहसुन की काफी अधिक मांग रहती है, लेकिन इस साल कोरोना के कारण लहसुन निर्यात के विदेशों में होने पर संशय बना है। ऐसे में करोड़ों के कारोबार पर संकट पसर गया है।

कुल्लू समेत सूबे के सिरमौर, मंडी, कांगड़ा, सोलन, शिमला और किन्नौर में लहसुन का उत्पादन होता है। उच्च गुणवत्ता के चलते हिमाचली लहसुन की मांग आधा दर्जन देशों में रहती है। दक्षिण भारत में भी इसकी काफी मांग रहती है। लॉकडाउन और कर्फ्यू के चलते लहसुन के दामों में गिरावट की आशंका जाहिर की जा रही है। लिहाजा इससे किसानों समेत सरकार को भी करोड़ों की चपत लग जाएगी। सूबे में करीब 4000 हेक्टेयर भूमि पर लहसुन उत्पादन हो रहा है।
औसतन 57482 मीट्रिक टन पैदावार हो रही है।
कुल्लू में करीब 1500 हेक्टेयर जमीन पर लहसुन की खेती हो रही है। खास बात यह है कि हिमाचली लहसुन उगाते समय किसान कीटनाशक और खाद का बेहद कम उपयोग करते हैं। यहां की मिट्टी और जलवायु भी अन्य इलाकों से अलग करती है। जिसके चलते विदेश में हिमाचली लहसुन की मांग अधिक रहती है। कृषि मंत्री डॉ. रामलाल मारकंडा ने कहा कि  सरकार ने किसान के तमाम उत्पाद को बेचने के नीति बनाई है। इसके जरिये ही मंडियों तक उत्पाद पहुंच रहा है। लहसुन के विपणन के लिए भी सरकार प्रयास करेगी।

 

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