सोपरी तटबंध की मरम्मत के नाम पर लकड़ी की बल्लियां और रेत से भरे कट्टे लगाए जा रहे हैं। करीब एक महीने बाद भी मरम्मत का काम 50 मीटर ही हो सका। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या गंगा की लहरों को रोकने के लिए ये इंतजाम काफी हैं। विभागीय अधिकारी भी स्वीकार कर रहे हैं बरसात तक मरम्मत का काम पूरा करना संभव नहीं होगा। इससे साफ है कि खादर के लोगों को बरसात तक बाढ़ की विभीषिका झेलनी होगी।
19 जून को गंगा ने सोपरी तटबंध की तरफ अपना रुख मोड़ लिया था। देखते ही देखते मिट्टी का तटबंध धराशायी हो गया। सिंचाई विभाग और तहसील प्रशासन ने जेसीबी से बड़े-बड़े पेड़ उखाड़कर तटबंध पर डाले, लेकिन गंगा उन्हें भी बहाकर ले गई। इसके बाद सिंचाई विभाग ने रेत और मिट्टी से भरे कट्टों को लगाकर गंगा को रोकने की कोशिश की, लेकिन सफलता नहीं मिली। फिर सिंचाई विभाग ने एक सिरे पर पत्थरों की चिनाई कर मरम्मत का काम शुरू किया। एक महीना बीत जाने के बाद मरम्मत का काम 50 मीटर से आगे नहीं बढ़ पाया। जबकि तटबंध डेढ़ किलोमीटर तक क्षतिग्रस्त है। मरम्मत के नाम पर अभी लकड़ी की बल्लियां लगाकर रेत और मिट्टी से भरे कट्टों को लगाया जा रहा है। इस तरह के मरम्मत के काम को भी गंगा कई बार बहाकर ले गई है। सिंचाई विभाग एक करोड़ से अधिक खर्च कर चुका है लेकिन इसका लाभ नहीं दिख रहा है।
मरम्मत के लिए विभाग को अभी तक केवल 25 लाख मिले हैं, खर्च एक करोड़ हो चुका है और ठेकेदार ने अपनी जेब से खर्च किए हैं। बरसात तक तटबंध की मरम्मत होना संभव नहीं है। जलस्तर बढ़ने पर काम नहीं हो पाता है। जिस जगह से पानी आबादी की तरफ जा रहा है वहां काम करना संभव नहीं है।
– पुरुषोत्तम कुमार, अधिशासी अभियंता, सिंचाई विभाग