मिड-डे मील वर्करों की नौकरी पर खतरा

मिड-डे मील वर्करों की नौकरी पर खतरा

स्कूलों में 26 बच्चों की शर्त की वजह से 15 साल से सेवाएं दे रहे मिड-डे मील वर्करों को अपनी नौकरी छोड़नी पड़ रही है। इसके विरोध में अब मिड-डे मील वर्करों ने दिल्ली में सीटू के बैनर तले धरना-प्रदर्शन करने की योजना बनाई है। इतना ही नहीं प्रदेश सरकार की ओर से बजट में मिड-डे मील वर्करों के मानदेय में की गई 500 रुपये की बढ़ोतरी से भी वे काफी नाखुश हैं। यह बात मिड-डे मील वर्कर यूनियन खंड ब्लॉक की प्रधान आशा देवी ने कही।

उन्होंने कहा कि इन वर्करों को जो मानदेय दिया जा रहा है। उसमें उनके परिवार का पालन पोषण नहीं हो पा रहा है। ऐसे में सरकार अब उनकी नौकरी छीनने की योजना बना रही है। कहा कि केंद्र सरकार ने मिड-डे मील के बजट में 30 प्रतिशत की कटौती की है। सरकार इस योजना को अपंग करके वेदांता, पेप्सीको, पतंजलि जैसी निजी कंपनियों के हवाले करना चाहती है। उन्होंने कहा कि 15 सालों से ईमानदारी से सेवाएं देने वाले वर्करों को अपने भविष्य की चिंता सताने लगी है।

इन कर्मचारियों के लिए न तो न्यूनतम वेतन है ओर न ही पेंशन का लाभ है। कहा कि 45वें श्रम सम्मेलन की सिफारिश के तहत स्कीम वर्कर को नियमित करना था, लेकिन आज तक उन्हें सरकार ने नियमित नहीं किया। प्रदेश सरकार की मानदेया में 500 रुपये की बढ़ोतरी के साथ मिड-डे मील वर्कर को केवल 4000 रुपये मिलेंगे। जो कि इस महंगाई के जमाने में ऊंट के मुंह में जीरा देने के समान है। कई बार उन्हें तीन-तीन महीने तक मानदेय नहीं मिलता।

उनके लिए छुट्टियों का कोई प्रावधान नहीं है। शिक्षण संस्थानों में काम करने वाले अन्य कर्मचारियों को 12 महीने का वेतन मिलता है, लेकिन उन्हें 10 महीने का वेतन दिया जाता है। उन्होंने सरकार से मांग की है कि वर्करों को हर महीने वेतन दिया जाए, 25 बच्चों की शर्त हटाई जाए, किसी भी वर्कर की छंटनी न की जाए और निजीकरण पर रोक लगाई जाए। इस मौके पर सीटू के जिला महासचिव सुदेश ठाकुर, यूनियन की उप-प्रधान सुकन्या, सचिव रविंद्र सहित अन्य सदस्य मौजूद रहे।

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