फंड जुटाने को ‘दान’ के लिए भी रखे टारगेट

बिलासपुर। खरबूजा चाहे छुरी पर गिरे या छुरी खरबूजे पर। कटेगा तो खरबूजा ही। राज्य स्तरीय नलवाड़ी मेले के आयोजन के लिए धन जुटाने के मामले में कुछ इसी तरह की स्थिति है। परची सिस्टम बंद करने का प्रचार कर रहे प्रशासन ने अब ‘दान’ लेना शुरू कर दिया है। इस उगाही को भले ही ‘डोनेशन’ का नाम दिया गया हो, लेकिन विभिन्न विभागों को इसके लिए बाकायदा टारगेट देने से इसका वास्तविक अर्थ आसानी से समझा जा सकता है।
प्रशासन ने इस बार राज्य स्तरीय नलवाड़ी मेले में आम लोगों से उगाही न करने का निर्णय लिया है। इसकी चौतरफा सराहना भी हुई, लेकिन अब प्रशासन के लिए अपना ही फैसला एक तरह से गले की फांस बन गया है। पैसा जुटाने का एक रास्ता तो प्रशासन ने स्वयं ही बंद कर दिया था, ऊपर से मेले में प्लाटों की नीलामी भी अपेक्षा के अनुरूप नहीं हो पाई। संभवतया यही वजह रही कि धन की कमी को पूरा करने के लिए अब ‘दान’ जुटाना शुरू कर दिया है। हैरानी इस बात की है कि एक ओर इसे डोनेशन का नाम दिया गया है, जबकि दूसरी ओर विभागों को इसके लिए बाकायदा टारगेट दिए गए हैं। खंड विकास कार्यालय के कुछ कर्मचारियों ने नाम प्रकाशित न करने की शर्त पर बताया कि प्रशासन द्वारा दिए गए इस आशय के आदेश उन्हें बीडीओ के माध्यम से मिले हैं। इसके लिए उन्हें आगे आम लोगों से ही सहयोग लेना पड़ेगा। सूत्रों की मानें तो फंड जुटाने के लिए विभिन्न विभागों को मेले की स्मारिका में विज्ञापन देने को भी कहा गया है।
उधर, बीडीओ प्रकाश चंद ने माना कि उन्हें डोनेशन बुक दी गई है। इसमें किसी भी तरह की जोर जबरदस्ती का सवाल ही पैदा नहीं होता। स्वेच्छा से धन देने वालों की ही डोनेशनल स्लिप काटने को कहा गया है। सवाल यह है कि अगर यह उगाही दान है तो क्या धार्मिक स्थलों में श्रद्धालुओं के लिए भी इसी तरह के टारगेट तय किए जाते हैं ?

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