पेश है अखाड़ों की छावनी का मेन्यू

महाकुंभ नगर (इलाहाबाद)
संगम की रेती पर महाकुंभ के दौरान अखाड़ों में अलग-अलग मान्यताओं, संप्रदाय, पंथ, विचारधारा, उपासना पद्धतियों की तरह छावनी की छत के नीचे किसिम-किसिम के स्वाद का भी संगम है। यहां एक ओर छावनी में धूनी रमाए साधु भगवत भजन, धर्मचर्चा और अध्यात्म के रंग में रंगे हैं, वहीं दूसरी ओर अखाड़ों की रसोई में दिन-रात जुटे रसोइयों के लिए रुचि के अनुरूप भोजन बनाना-खिलाना ही साधना और कुंभ का पुण्य है।

अखाड़ों की छावनी में जुटने वाली पंगत में न कोई छोटा होता है, न बड़ा, सभी के लिए एक भोजन और एक ही पंक्ति में प्रसाद लेकिन इसे पाने वालों में साधु-संतों से इतर सामान्य श्रद्धालु, साधक भी होते हैं। भंडारे की शुरुआत से लेकर अंत तक पंगत में बिना रोकटोक कोई भी शामिल हो सकता है। वैसे इस रसोई में पूड़ी-सब्जी और खिचड़ी ही नहीं चाट, डोसा, छोला-भटूरा से लेकर तमाम तरह की रोटियां, हलुए, मिठाइयां, सब्जियां बनाई जाती हैं।

निरंजनी अखाड़े के महंत नरेद्र गिरि के मुताबिक साधुओं की जैसी रुचि होती है, उसी के अनुरूप भोजन तैयार कराया जाता है। इसी के तहत छावनी में डोसा और छोला भटूरा भी तैयार कराया गया। कभी कढ़ी-चावल, पुलाव तो कभी गाजर, मूंग सहित कई तरह के हलुए भी बनवाए गए। साधुओं की पसंद पर टिकिया, फुलकी के साथ चटपटी चाट भी बनवाई गई।

निर्मल पंचायती अखाड़े के महंत देवेंद्र सिंह शास्त्री कहते हैं, संतों को यहां भी उनकी रुचि का भोजन देने की तैयारी के तहत पिन्नी से लेकर श्रीखंड तक तमाम मिठाइयां बनवाई गई हैं। बड़ा उदासीन के मुखिया महंत दुर्गादास ने कहा, सब्जियों की तरह व्यंजन भी रोज बदलते रहते हैं। नाश्ते में भी कई तरह की पकौड़ियां, हलुए, जलेबियां, इमरती बनाई जाती है।

समष्टि में मिलता है खास व्यंजन
अखाड़ों में किसी नए महामंडलेश्वर या फिर किसी भगत की ओर से जो समष्टि यानी सामूहिक भंडारा कराया जाता है, उसमें उसकी रुचि के व्यंजनों की प्रमुखता होती है। ऐसे में राजस्थान के संत के समष्टि में बाटी चूरमा, बिहार में बाटी चोखा, दक्षिण भारत में डोसा, पंजाब में मक्के की रोटी और सरसों का साग भी शामिल रहेगा। ऐसी समष्टि में दर्जन भर से ज्यादा सब्जियां, आधा दर्जन तरह की रोटियां, दो या तीन तरह के हलुए होना सामान्य बात है।

सुबह से ही शुरू होती है तैयारी
अखाड़ों की रसोई में रोजाना दो से तीन हजार व्यक्तियों का भंडारा होता है, जिसके लिए डेढ़ से दो दर्जन रसोइयों के साथ 50 से 60 कारीगरों की टीम जुटती है। बड़े तवे पर एक साथ सौ-सौ रोटियां सिंकती हैं तो निर्मल की रसोई में रोटियां बनाने की मशीन आई है। खाना बनाने का क्रम सुबह छह बजे से शुरू होकर ग्यारह बजे तक पूरा होता है।

खास मौकों पर खास खानसामा
रोजाना की रसोई से इतर पट्टाभिषेक या किसी खास मौके पर खास खानसामों को बुलाया जाता है। हरिद्वार से आए रसोइये राजेंद्र के साथ सौ कारीगरों की टीम और तीन ट्रक सामान के साथ आए हैं। उनके मुताबिक बड़े भंडारे में व्यक्तियों की संख्या के मुताबिक पेमेंट किया जाता है, फिर गैस सिलेंडर से लेकर सारा सामान जुटाना होता है।

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