पानसिंह तोमर: जिसे भ्रष्ट व्यवस्था ने देशभक्त सिपाही से चंबल का बागी बना दिया

नई दिल्ली: राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार हासिल करने वाली बालीवुड फिल्म ‘पान सिंह तोमर’ का नायक असली जीवन में सात बार एथलीट का राष्ट्रीय चैंपियन बना एक और देशप्रेमी सैनिक था जिसे भ्रष्ट व्यवस्था के कारण बागी बनना पड़ा। और समाज की मुख्यधारा से कटकर चंबल के बीहड़ों को आशियाना बनाने के बाद आखिरकार पुलिस मुठभेड़ में मारा गया।

मध्यप्रदेश के भिदौसा में एक अक्टूबर 1932 को जन्मे तोमर को सेना में शामिल होने के बाद पता लगा कि वह बाधा दौड़ का कुशल धावक है। तीन हजार मीटर की बाधा दौड़ में तीन मिनट चार सेकेंड का तोमर का रिकार्ड 10 वर्षों तक कायम रहा। उसने 1958 में एशियाई गेम्स में भारत का प्रतिनिधित्व किया। सेना से समय से पहले सेवानिवृत्त होने के बाद वह अपने गांव वापस आ गया। खेल में तोमर के शानदार कैरियर के कारण उसे 1962 और 1965 के युद्ध में मोर्चे पर नहीं भेजा गया।

देश-विदेश में शोहरत हासिल करने वाले इस देशभक्त सैनिक को गांव आकर एहसास हुआ कि देश की व्यवस्था किस कदर भ्रष्ट हो चुकी है। उसका गांव के ही बाबू सिंह के साथ भूमि विवाद हो गया जिसके पास सात लाइसेंसी बंदूकें थीं। इस जांबाज सैनिक को अपनी ही जमीन के लिए बाबू को 3000 हजार रूपये देने पड़े। तोमर ने अपना तमाम मेडलों के जरिए अपना परिचय देकर इस अन्याय की दास्तां जिलाधिकारी को सुनायी लेकिन उसकी एक न सुनी गई। इसके बाद बाबू ने तोमर को चुनौती देते हुए उसकी 95 वर्षीय वृद्धा मां की पिटाई कर दी। मां के अपमान से आहत तोमर ने बंदूक उठायी और बाबू को ढेर कर दिया।

इसके बाद जो उसने चंबल के बीहड़ों का रास्ते चुना तो फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उस जमाने में पान सिंह पर 10 हजार रूपये का ईनाम घोषित किया गया।

अक्टूबर 1981 की एक बार रोज पान सिंह के टोली का ही एक साथी गद्दारी कर गया और उसने पुलिस का मुखबिर बन गया। उसके बाद सर्किल इंस्पेक्टर महेंद्र प्रताप ने अपने 60 सदस्यीय दल के साथ तोमर को घेर लिया। कभी देश के लिए शहीद होने का जज्बा रखने वाला बागी पान सिंह तोमर करीब 12 घंटे तक पुलिस से मोर्चा लेने के बाद बीहड़ों में मारा गया।

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