जेनरिक दवाओं पर भारी पड़ रहे ‘मेडिकल माफिया’

मेडिकल माफिया’ के हौसले इतने बुलंद हैं कि जन औषधि की दुकानें दम तोड़ गईं। ये इतने सक्रिय हैं कि सरकार भी घुटनों के बल हो गई है। जन औषधि केंद्रों पर ताले लटके हैं। योजना शुरू होने से पहले ही इस बात का अंदेशा था, जो साबित भी हो गया।

इंदिरा मेडिकल कॉलेज और दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल में जन औषधि केंद्र बंद हो गए हैं। आखिर किसके इशारे पर इनके शटर डाउन कर दिए गए, यह सवाल वे लोग कर रहे हैं जो सस्ती दवाएं मुहैया कराने के लिए दुआ दे चुके हैं और अब कोस रहे हैं।

ब्रांडेड दवाओं और जन औषधि स्टोर के जरिये बेची जा रही गैर ब्रांडेड की जेनरिक दवाओं की कीमतों में जमीन-आसमान का अंतर है। राज्य सरकार ने आईजीएमसी और डीडीयू में जन औषधि केंद्र खोले ताकि पब्लिक को सस्ते दामों पर दवा उपलब्ध हो सके। हालांकि इन केंद्रों के खुलने से पहले ही विवाद उठना शुरू हो गया था।

कुछ डॉक्टरों का पक्ष था कि जेनरिक दवा ब्रांडेड दवा का मुकाबला नहीं कर सकतीं। लिहाजा, जन औषधि केंद्र खुलने के बाद डॉक्टरों का अपेक्षित सहयोग न मिलने के कारण भी तालाबंदी की नौबत आई है। समय पर दवा की सप्लाई न पहुंचने के कारण भी यह योजना फ्लॉप रही। यह दावा स्वास्थ्य महकमे का है।

जन औषधि में इतनी सस्ती हैं दवा
सिटराजीन (दस एमजी) की दस गोलियों के पैकेट की कीमत बाजार में बीस रुपये है तो वहीं जन औषधि केंद्र पर यह पौने तीन रुपये में उपलब्ध है। इसी तरह पांच सौ एमजी की पैरासीटामोल की दस गोलियों के पैकेट की बाजार में कीमत दस रुपये है जबकि यह केंद्र पर ढाई रुपये से भी कम में उपलब्ध है। खांसी की दवा बाजार में तैंतीस रुपये में उपलब्ध है, इन केंद्रों में 13.30 रुपये में उपलब्ध है।

जल्द खुलेंगे बंद ताले
स्वास्थ्य निदेशक डॉ. कुलभूषण सूद ने कहा कि दवाओं के नियमित टेंडर न होने की वजह से दिक्कत आई है, इस कारण जन औषधि केंद्र बंद करने पड़े। अब टेंडर हो गया है, इसमें 245 दवाओं को चिह्नित किया गया है। यह बहुत ही सस्ती दरों पर उपलब्ध होंगी।

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