अब दिखाई दिया केदारनाथ आपदा का भयानक रूप

आपदा के छह माह बाद भी केदारघाटी में जिंदगी ठहरी हुई सी है। ऐसा लग रहा है मानो आपदा भी यहीं ठहर गई हो।

छह माह पहले जून के आखिर में जब मैं गुप्तकाशी आया था, तब यहां सरकारी अफसरों, गैर सरकारी संगठनों से जुड़े लोगों और पीड़ितों का जमावड़ा था। अफरातफरी थी। अब गुप्तकाशी शांत है। लेकिन दर्द अब भी वही है।

कैसे चलेगी आगे की जिंदगी
तब मदद के लिए बढ़े हाथ भी अब वहां नहीं हैं। भविष्य के प्रति उपजी लोगों की चिंताएं अब और बढ़ गई हैं। आपदा से बेरोजगार लोगों को समझ में नहीं आ रहा कि आगे की जिंदगी कैसे चलेगी।

जून की आपदा के बाद गुप्तकाशी तक पहुंचाने वाला घनसाली-मयाली मार्ग एकमात्र रास्ता था। इस सड़क से गुप्तकाशी तक के लिए 35 किमी की दूरी तय करने में वाहन से मुझे तब तीन घंटे लगे थे और रविवार, 29 दिसंबर को भी।

सड़क की हालत जून जैसी ही है। वाहन हिचकोले खाते ही बढ़ पाते हैं। लापता लोगों का पता बताने की अपील करते पोस्टर अब भी जगह-जगह चिपके हैं। इनमें से किसी का पता शायद ही चल पाया हो।

सरकार ने आपदा के बाद सितंबर में केदारनाथ की यात्रा फिर से भले ही शुरू करवा दी थी, लेकिन सड़क के जरिए गौरीकुंड तक पहुंचना अब भी संभव नहीं हो पाया है।

भूस्खलन जैसी घटनाएं बढ़ जाएंगी
गौरीकुंड से कुछ किलोमीटर पहले तक की सड़क ही बन पाई है। संपर्क मार्गों की बात छोड़ ही दी जाए तो बेहतर। लोग चिंतित हैं कि अगली बरसात में इन बदहाल मार्गों पर भूस्खलन जैसी घटनाएं बढ़ जाएंगी।

संपत्ति के नुकसान की भरपाई अब भी बाकी है। गुप्तकाशी से करीब 10 किलोमीटर दूर गढतरा, देवसाल, रुद्रपुर, नारायणकोटी जैसे कई गांव हैं, जिन्होंने 16-17 जून को केदारघाटी की आपदा का सीधे सामना किया था। ये गांव यात्रा रूट के आसपास ही हैं।

छह माह बाद भी इन गांवों के लोगों को नहीं पता कि आगे क्या होगा। इन गांवों की आजीविका केदार यात्रा पर ही निर्भर है। इन्हें नहीं लगता कि सड़कों की जैसी हालत है, अगले सीजन में भी जिंदगी चलाने लायक कमाई हो पाएगी।

इन गांवों के जिन लोगों के गौरीकुंड में गेस्ट हाउस, लॉज, दुकान आदि बर्बाद हो गए थे, वे अब तक मुआवजे की बाट जोह रहे हैं। हालांकि, तत्काल राहत, मुआवजा आदि को लेकर सरकार अपनी पीठ थपथपा सकती है।

गढतरा में ही तीन से अधिक लोगों को आपदा में जान से हाथ धोना पड़ा था। इनके परिजनों को मुआवजे की राशि मिल चुकी है, लेकिन लोग कहते हैं कि इस राशि से तो आगे की जिंदगी नहीं चल सकती।

हो पाएगा पूरे साल का गुजारा
गढतरा के रामकिशन गोस्वामी 16-17 जून की आपदा के दौरान केदारनाथ में ही थे। प्रकृति के उस तांडव से बच निकले रामकिशन कहते हैं, अप्रैल से यह क्षेत्र फिर यात्रा की तैयारी में जुटेगा। लेकिन उनके सामने सवाल है कि क्या यात्रा फिर शुरू हो पाएगी।

यात्रा शुरू हो भी गई तो क्या उससे पूरे साल भर का गुजारा हो पाएगा। सरकार इस यात्रा के लिए क्या कर रही है। इस सवाल का जवाब फिलहाल रामकिशन को नहीं मिल पाया है।

सरकार के मुताबिक आपदा में सबसे अधिक मार पर्यटन पर ही पड़ी। करीब 12 हजार करोड़ रुपये के नुकसान का आकलन किया गया था।

पर सरकार के पुनर्निर्माण पैकेज का असर जमीन पर देखने को नहीं मिल पा रहा है। यहां लोगों को तो कम से कम यह बिलकुल नहीं लग रहा कि यात्रा पहले की तरह चल भी पाएगी।

क्षतिग्रस्त भवन दे रहे हादसे को न्योता
जलप्रलय के छह माह बाद भी केदारनाथ राजमार्ग खतरनाक बना हुआ है। कई स्थानों पर सड़क के ऊपर लटके भवन हादसे को न्योता दे रहे हैं। प्रशासन की ओर से लटके भवनोँ को हटाने की प्रक्रिया चलाई गई थी, लेकिन यह अभियान भी आधे में ही रुक गया।

जलप्रलय से केदारनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया था। बीआरओ ने बमुश्किल वाहनों की आवाजाही शुरू करवाई, लेकिन सड़क की स्थिति नहीं सुधर पाई है।

विजयनगर-पुराना देवल में आपदा के कारण क्षतिग्रस्त भवनों के मलबे लटके हुए हैं। चंद्रापुरी बाजार में भी यही स्थिति है। वाहन क्षतिग्रस्त भवनों के नीचे से गुजर रहे हैं।

हालांकि, एसडीएम सदर सीएस चौहान का कहना है कि विजयनगर में भवन का जितना हिस्सा खतरनाक था, ढहा दिया गया है। फिलहाल भवन के अवशेष से खतरा नहीं है।

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