रूस ने अंतरिक्ष क्षेत्र में बढत हासिल करने के लिये कमर कसी

मास्को: विश्व को स्पुतनिक के रूप में पहला कृत्रिम उपग्रह और यूरी गगारिन के रूप में पहला अंतरिक्ष यात्री देने वाले रूस ने अब इस क्षेत्र में दोबारा से अपना परचम लहराने के लिये कमर कस ली है और अगले कुछ वर्षों के दौरान अंतरिक्ष शोध में भारी निवेश करने जा रहा है। रूस की रिया नोवोस्ती संवाद समिति की रिपोर्ट में बताया गया कि प्रधानमंत्री दिमित्री मेदवेदेव ने वर्ष 2013 से लेकर वर्ष 2020 के बीच रूस के अंतरिक्ष उद्योग को पुन: विकसित करने के लिये 68.71 अरब डालर की योजना को मंजूरी दी है।

मेदेवेदेव ने कहा, ‘इसके बाद हमारा देश अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन सौर मंडल में चंद्रमा मंगल तथा दूसरे ग्रहों के अध्ययन जैसी दूरगामी परियोजनाओं में अधिक सक्रियता से हिस्सा लेने में सक्षम बन सकेगा।’ रूस का वर्ष 2010 और 2011 का अंतरिक्ष बजट 3.3 अरब डालर रहा था जो कि मेदेवेदेव द्वारा किये गये वादे से काफी कम था लेकिन उन्होंने बताया था कि कुछ धनराशि का निवेश सरकार द्वारा किये जाने वाले निवेश के अतिरिक्त होगा। मेदेवेदेव ने इस वर्ष अगस्त में देश के अंतरिक्ष उद्योग की दशा की आलोचना करते हुए कहा था कि यह देश की प्रतिष्ठा और उसे मिलने वाले अनुबंधों के लिये घातक साबित हो रही है।

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा पिछले वर्ष से अपने शटल यानों के सेवानिवृत्त हो जाने के बाद से अपने अंतरिक्ष यात्रियों को आईएसएस तक लाने ले जाने के लिये रूस की सहायता पर निर्भर है। रूस को पिछले वर्षों के दौरान अपने राकेट इंजन विफ्ल हो जाने की वजह से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शर्मिदंगी का सामना करना पडा है। उल्लेखनीय है कि सोवियत संघ की वर्ष 1917 में स्थापना के समय से ही रूसी वैज्ञानिकों का एयरोस्पेस शोध के क्षेत्र में खासा दखल रहा है।

रूस ने ही चंद्रमा के अध्ययन के लिये वर्ष 1970 में लूनोखोद परियोजना की नींव रखी थी जिसके जरिये मानवरहित रोवरों को चंद्रमा पर भेजा गया। इन रोवरों ने भविष्य में नासा के मंगल ग्रह पर जाने वाले रोवरों पाथफाइंडर स्पिरिट और आपरचुनिटी तथा क्यूरोसिटी के विकास में अहम योगदान दिया। हालांकि वर्ष 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद नये राष्ट्रपति बोरिस येल्तिसिन ने अंतरिक्ष कार्यक्रमों के बजट में भारी कटौती कर दी थी जो अगले दो दशकों तक कायम रही।

हालांकि किसी समय रूसी स्पेस शटल बुरान को अपनी कमर पर लेकर उडान भरने वाले भीमकाय विमान अंतोनोव 225 को निजी क्षेत्र के दबाव की वजह से दोबारा सेवाओं में लगाया गया और यह मौजूदा समय में रेल के इंजनों सैन्य टैंकों जैसे भारी साजोसामान को दूरदराज के इलाकों तक पहुंचाने में काम आ रहा है। इस श्रृंखला का ही दूसरा विमान अंतोनोव 124 जर्मनी से दिल्ली मेट्रो रेल के डिब्बों को वर्ष 2008 में भारत लेकर आया था।

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