
शिमला : हिमाचल प्रदेश में 6 से 14 वर्ष की आयु के 99.4 प्रतिशत नौनिहाल स्कूल जा रहे हैं। इससे साफ है कि विपरीत भौगोलिक परिस्थितियों के बावजूद भी हिमाचल शिक्षा के क्षेत्र में केरला-पांडीचेरी को कड़ी चुनौती दे रहा है। शिक्षा से जुड़ी प्रथम संस्था की रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है। विदित रहे कि हिमाचल में एक दशक पहले तक 19 फीसदी से अधिक बच्चे स्कूल नहीं जा रहे थे। रिपोर्ट से साफ हुआ है कि प्रदेश के लोग अब शिक्षा के महत्व को समझने लगे हैं। हाल के वर्षों में सरकार और शिक्षा विभाग द्वारा किए गए प्रयासों के फलस्वरूप प्रदेश के लगभग शत-प्रतिशत नौनिहाल स्कूल जाने लगे हैं जबकि देश में कुछ राज्य ऐसे भी हैं जहां 6 फीसदी से अधिक नौनिहालों ने स्कूल की दहलीज पर कदम नहीं रखा है।
छात्रों के पंजीकरण में अब केरला और मिजोरम ही हिमाचल से आगे रहे हैं। वर्ष 2011 के सर्वेक्षण में हिमाचल प्रदेश पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा व पांडीचेरी को पछाड़ कर आगे निकल चुका है, जोकि आधा दशक पूर्व तक हिमाचल से आगे थे। हिमाचल में शत-प्रतिशत साक्षरता लक्ष्य पाने को पहले एजुकेशन गारंटी स्कीम सैंटर, अल्टरनेटिव इनोवेटिव सैंटर और अब गैर-आवासीय ब्रिज कोर्स आरंभ (एनआरबीसी) किए जा रहे हैं। इसके साथ ही बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा, पठन-पाठन सामग्री के साथ-साथ स्कूल ड्रैस भी नि:शुल्क दी जा रही है।
किस राज्य में कितने बच्चे नहीं जा रहे स्कूल
प्रथम संस्था के सर्वे के अनुसार हिमाचल में 0.6 फीसदी, आंध्र प्रदेश में 2.8, अरुणाचल प्रदेश में 3.8, असम में 4.2, बिहार में 3.0, छत्तीसगढ़ में 2.4, गुजरात में 2.7, हरियाणा में 1.4, जम्मू-कश्मीर में 2.5, झारखंड में 4.7, कर्नाटका में 2.8, केरला में 0.1, मध्य प्रदेश में 2.2, महाराष्टï्र में 1.1, मणिपुर में 1.1, मेघालय में 5.8, मिजोरम में 0.6, नागालैंड में 2.0, ओडिशा में 3.7, पंजाब में 1.6, राजस्थान में 4.5, तमिलनाडु में 0.9, त्रिपुरा में 1.3, उत्तर प्रदेश में 6.1, उत्तराखंड में 1.1 व पश्चिम बंगाल में 4.3 फीसदी बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं। अनिवार्य शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम-2009 के लागू हो जाने से हिमाचल में स्कूल न जाने वाले 0.6 बच्चों के भी शीघ्र साक्षर होने की उम्मीद जगी है।
प्रथम संस्था की रिपोर्ट के अनुसार हिमाचल में 6 से 14 आयु वर्ग के 99 प्रतिशत बच्चे स्कूल जा रहे हैं जोकि सराहनीय है। विभाग स्कूल जाने से वंचित रह गए एक प्रतिशत से कम बच्चों को भी विभिन्न स्कीमों के माध्यम से मुख्यधारा में जोडऩे का पूरा प्रयास रहा है। इसके लिए स्वयंसेवी संस्थाओं की मदद भी ली जा रही है।
राजीव शर्मा, निदेशक प्रारंभिक शिक्षा