
शिमला। राज्य में कई दवाएं कीमत से कई सौ फीसदी ज्यादा दाम वसूलकर बिक्री की जा रही हैं। दवा खरीदारों से दस-बीस फीसदी नहीं बल्कि छह सौ फीसदी तक मुनाफा केमिस्ट कूट रहे हैं। बाजारों में कुछ ऐसी दवा बिक रही हैं, जिन पर कोई प्राइस कंट्रोल नहीं। आम जनता लुटने को मजबूर है और सरकार का इस पर कोई नियंत्रण नहीं। इस स्थिति में सरकारी महकमे का एक ही जवाब है – ‘हम कुछ नहीं कर सकते’। ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि इस लूट पर कौन अंकुश लगाएगा?
आरटीआई के तहत इस बात का खुलासा हुआ है। शहर में चल रही दो केमिस्ट शॉप से एक ही कंपनी की दवा विगोरा 100 एमजीएस की खरीद की गई। इन दुकानों से कैश मेमो भी लिया गया। कैश मेमो में केमिस्ट ने एमआरपी 106 रुपए के साथ पांच फीसदी वैट लगाकर 111 रुपए 30 पैसे में दवा दी। इस दवा के बारे में जब आरटीआई से जानकारी मांगी गई तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। केमिस्ट को यह दवा मात्र चौदह रुपए में दुकान तक पहुंची है। ड्रग इंस्पेक्टर से जब इस मामले की शिकायत की गई तो वहां से जवाब मिला कि केमिस्ट ने एमआरपी से ज्यादा रुपए नहीं लिए हैं। एमआरपी पर प्राइस कंट्रोल उनके क्षेत्राधिकार से बाहर है। इस तरह की कई दवाएं बाजारों में कई गुणा अधिक मुनाफे पर बेची जा रही हैं। आम उपभोक्ता लूटने को मजबूर है। सेमडिकोट के पूर्व अध्यक्ष डा. अनिल ओहरी ने कहा कि एमआरपी पर प्राइस कंट्रोल को लेकर सरकार ही अंतिम निर्णय ले सकती है। एसोसिएशन कई मर्तबा इस मुद्दे को उठा चुकी है। उधर, ड्रग कंट्रोलर नवनीत मरवाह स्पष्ट कर चुके हैं कि यह उनके क्षेत्राधिकार से बाहर है। ऐसे में कौन लगाएगा इस लूट-खूसट पर रोक?