अटकलें डॉ. बिंदल के मंत्रिमंडल में शामिल होने की लगाई जा रही थीं लेकिन, अचानक बदले राजनीतिक घटनाक्रम के बाद वह भाजपा के मुखिया बन गए। एक साधारण कार्यकर्ता के रूप में अपने राजनीतिक करिअॅर की शुरुआत करने वाले डॉ. बिंदल स्वास्थ्य मंत्री, विधानसभा अध्यक्ष के पदों से होते हुए अब प्रदेश अध्यक्ष बने हैं।
विधानसभा अध्यक्ष पद पर काबिज रहते हुए अक्सर विपक्ष ने उन्हें निशाने पर लेने की कोशिश की। पच्छाद उपचुनाव में विपक्ष ने उनके कथित चुनाव प्रचार को मुद्दा बनाकर प्रदर्शन तक कर डाले। राजनीतिक गलियारों में आम चर्चा है कि अब प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद बिंदल राजनीति की बिसात पर चेक एंड मेट का खेल खेलेंगे तो संगठन को और अधिक मजबूत बनाने के लिए जरूरी ‘उपचार’ भी करेंगे।
नगर परिषद से विधानसभा तक का सफर
आदिवासी इलाकों में रहे प्रचारक
डॉ. बिंदल ने संघ के प्रचारक के रूप में आदिवासी क्षेत्रों में भी कार्य करने का निर्णय लिया था। करीब ढाई साल तक झारखंड में ही निशुल्क चिकित्सालय का नेतृत्व करते रहे। डॉ. राजीव बिंदल ने 1975 में इमरजेंसी के दौरान जेल भी भुगती। 1983 में पैतृक शहर सोलन में चिकित्सा कार्य शुरू किया। 1995 में पहली बार राजनीतिक जीवन में कदम रखा।
पांच साल तक नगर परिषद अध्यक्ष रहने के बाद 2000 में उप चुनाव जीता। 2003 में सोलन हलके से दूसरी बार विधायक बने। 2007 में चुनाव जीतने की हैट्रिक बना ली। डि-लिमिटेशन के बाद चुनाव क्षेत्र बदलकर उन्हें नाहन से मैदान में उतारा गया। 2017 में नाहन से दूसरी बार चुनाव जीत गए। संगठनात्मक कौशल व अनुभव की वजह से पार्टी ने उन्हें हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, जम्मू-कश्मीर चुनाव में कई बार महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां सौंपी।