हिमाचल हाईकोर्ट में अटल टनल के आसपास कचरे के ढेरों पर कड़ा संज्ञान लिया है। अदालत ने मुख्य सचिव से गंदगी रोकने के लिए बनाए गए प्रावधानों की जानकारी तलब की है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश सबीना और न्यायाधीश सत्येन वैद्य की खंडपीठ ने मामले की आगामी सुनवाई अब 27 मार्च निर्धारित की है। मामले पर वीरवार को हुई सुनवाई के दौरान सरकार ने अदालत से ताजा शपथपत्र दायर करने का आग्रह किया। अदालत को बताया गया कि मुख्य सचिव या प्रधान सचिव पर्यटन की ओर से शपथपत्र के माध्यम से ताजा रिपोर्ट दायर की जाएगी। अदालत ने गंदगी को हटाने के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी कोर्ट के समक्ष रखने के आदेश दिए थे। कोर्ट ने गंदगी फैलाने वालों पर जुर्माना लगाने वाले नियम व पिछले एक वर्ष में वसूल किए गए जुर्माने की रकम की जानकारी भी मांगी थी।
अटल टनल के आसपास गंदगी को रोकने के लिए बनाए गए अथवा बनाए जाने वाले प्रावधानों की जानकारी भी मांगी गई थी। इनमें चेतावनी बोर्ड, डस्टबिन, पुरुषों व महिलाओं के लिए शौचालय और क्षेत्र को साफ सुथरा बनाए रखने के लिए उठाए जा रहे उपाय शामिल हैं। बता दें कि अटल टनल एक प्रसिद्ध पर्यटक स्थल के रूप में उभरा है और बड़ी तादाद में पर्यटक लाहौल की खूबसूरत वादियों में घूमने आते हैं। पर्यटकों द्वारा अटल टनल के आसपास कचरा फैलाया जा रहा है। यहां न तो पर्याप्त कूड़ेदान है और न ही पुरुषों और महिलाओं के लिए पर्याप्त शौचालय हैं। यह टनल हिमालय की पीर पंजाल श्रृंखला के उत्तरी क्षेत्र में रोहतांग दर्रे के नीचे बनाई गई है। 3200 करोड़ रुपए की लागत से निर्मित इस टनल का लोकार्पण 3 अक्तूबर, 2020 को किया गया था। रक्षा मंत्रालय के तहत बीआरओ ने इसका कार्य पूरा किया था।
नेशनल बागवानी बोर्ड को प्रोजेक्ट के लिए सब्सिडी देने के आदेश
वहीं, हाईकोर्ट ने एक अन्य फैसले में नेशनल बागवानी बोर्ड को प्रोजेक्ट के लिए सब्सिडी देने के आदेश दिए है। न्यायाधीश विवेक सिंह ठाकुर ने बोर्ड की ओर से सब्सिडी न देने के निर्णय को खारिज कर दिया। अदालत ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया कि बोर्ड 13 अप्रैल तक सभी याचिकाकर्ताओं को नियमानुसार बनाए गए प्रोजेक्टों को सब्सिडी अदा करें। याचिकाकर्ता सुधीर खिमटा, ज्योति लाल मेहता और राजेंद्र सिंह की ओर से दायर याचिकाओं का निपटारा करते हुए अदालत ने यह निर्णय सुनाया। मामले के अनुसार बागवानी के विकास और प्रोत्साहन के लिए भारत सरकार ने 1984 में नेशनल बागवानी बोर्ड की स्थापना की थी। बोर्ड बागवानों को सहायता प्रदान करने के लिए सब्सिडी देता है। इसके लिए समय-समय पर बागवानोें के हितों में स्कीमें निकाली जाती है। सेब के फलों की पैकिंग व ग्रेडिंग यूनिट को स्थापित करने के लिए बोर्ड ने स्कीम निकाली कि किसी प्रोजेक्ट की कुल लागत 50 लाख तक होने पर 35 फीसदी सब्सिडी दी जाएगी।
जबकि, 72.5 लाख रुपये की लागत वाले प्रोजेक्ट पर सब्सिडी की राशि 50 फीसदी रखी गई है। याचिकाकर्ताओं ने सेब के फलों की पैकिंग व ग्रेडिंग यूनिट को स्थापित करने के लिए बैंक से लोन लिया। बोर्ड की स्कीम के तहत उन्होंने सब्सिडी के लिए नेशनल बागवानी बोर्ड के समक्ष आवेदन किया। बोर्ड ने उनके आवेदन को यह कहकर खारिज कर दिया कि प्रोजेक्ट के निर्माण कार्य को समय पर पूरा नहीं किया गया। अदालत ने पाया कि बोर्ड ने याचिकाकर्ताओं के आवेदन को गलत तरीके से रद्द किया है। जबकि, संयुक्त जांच टीम ने बोर्ड को रिपोर्ट दी थी कि यूनिट का निर्माण कार्य समय पर पूरा कर लिया गया था। अदालत ने पाया कि बोर्ड ने संयुक्त जांच टीम की रिपोर्ट को नजरअंदाज करते हुए याचिकाकर्ताओं का आवेदन खारिज किया है।