चंडीगढ़
पंजाब पुलिस ने बीएसएफ कांस्टेबल के तीन साथियों को गिरफ्तार कर पाकिस्तान से चलाए जा रहे नशे और गैरकानूनी हथियारों की तस्करी वाले रैकेट का पर्दाफाश किया है। जम्मू-कश्मीर के सांबा जिले में तैनात बीएसएफ कांस्टेबल सुमित कुमार उर्फ नोनी को शनिवार को गिरफ्तार किया गया था। उसके पास से 9 एमएम की तुर्की की बनी जिगाना पिस्तौल, 82 कारतूस और 32.30 लाख रुपये की ड्रग मनी बरामद की है।
कारतूसों पर पाकिस्तान ऑर्डिनेंस फैक्ट्री (पीओएफ) का मार्का है। पंजाब के डीजीपी दिनकर गुप्ता के अनुसार कांस्टेबल सुमित गांव मगर मुड़ियां थाना दोरांगला जिला गुरदासपुर के अलावा तीन अन्य सिमरजीत सिंह उर्फ ‘सिम्मा’, मनप्रीत सिंह और अमनप्रीत सिंह को गिरफ्तार किया गया है। इनके विरुद्ध आईपीसी की धारा 302, 506, 341, 120बी, 212 और 216, 25 आर्म्स एक्ट के अधीन थाना करतारपुर जिला जालंधर में मामला दर्ज किया गया है। अमनप्रीत सिंह, सिमरनजीत सिंह और सुखवंत सिंह, सभी निवासी गांव धीरपुर के खिलाफ पहले ही जगजीत सिंह के कत्ल का केस दर्ज किया गया है।
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डीजीपी ने बताया कि जालंधर (ग्रामीण) पुलिस ने अमनप्रीत सिंह को 11 जुलाई को जगजीत के कत्ल केस में गिरफ्तार किया था। जांच के दौरान अमनप्रीत ने खुलासा किया कि वह और उसका भाई पाकिस्तान के एक तस्कर शाह मूसा से संपर्क में थे और सरहद से हथियार और ड्रग्स तस्करी करते थे। वह मनप्रीत सिंह और जम्मू-कश्मीर की सरहद पर तैनात बीएसएफ के एक कांस्टेबल सुमित के जरिये शाह मूसा के संपर्क में आए थे। सुमित इससे पहले एक कत्ल केस की सुनवाई के दौरान गुरदासपुर जेल में बंद था। वहां वह मनप्रीत सिंह पुत्र गुरबचन सिंह निवासी गांव दारापुर थाना भैनी मियां खां जिला गुरदासपुर से मिला था।
हथियार और ड्रग्स पहुंचाने को बीएसएफ कांस्टेबल को मिले थे 39 लाख
हथियार और ड्रग्स तस्करी में गिरफ्तार चार आरोपियों ने पुलिस पूछताछ में कई खुलासे किए हैं। पंजाब के डीजीपी दिनकर गुप्ता ने बताया कि सीमा पार से नशों और हथियारों की तस्करी करने की साजिश गुरदासपुर जेल में रची गई थी। मनप्रीत ने आगे अमनप्रीत, सिमरनजीत और सुखवंत को बीएसएफ के कांस्टबेल सुमित कुमार से अवगत करवाया था। इन खुलासों के बाद जालंधर ग्रामीण पुलिस ने सिमरजीत और मनप्रीत को 12 जुलाई को गिरफ्तार किया था।
वहीं, डीजीपी पंजाब ने 11 जुलाई को डीजी बीएसएफ के पास निजी तौर पर यह मामला उठाने के बाद कांस्टेबल सुमित कुमार को बीएसएफ से तालमेल करके गिरफ्तार कर किया। दिनकर गुप्ता ने कहा कि बीएसएफ के कांस्टेबल सुमित ने सीमा पार से बार-बार नशीले पदार्थों और हथियारों की तस्करी में अपने शामिल होने का खुलासा किया है।
पहली बार उसने सरहदी पार से 15 पैकेट हेरोइन प्राप्त करने और आगे भेजने में सहायता की थी। दूसरी बार उसने 25 पैकेट हेरोइन और सरहद पर 9 मिलीमीटर की एक जिगाना पिस्तौल की डिलीवरी ली। कुछ अंजाने व्यक्तियों को यह हेरोइन देने के बाद उसने पिस्तौल अपने पास रख ली थी। सुमित को नशीले पदार्थ और हथियारों की खेप आगे भेजने के तौर पर 39 लाख रुपये मिले थे।
पहले उसे 15 लाख और फिर 24 लाख रुपये दो किस्तों में मिले थे। डीजीपी ने कहा कि अब तक की जांच में यह खुलासा हुआ है कि हत्याकांड में जमानत मिलने के बाद सिपाही सुमित कुमार को सांबा सेक्टर में एक गार्ड टावर में तैनात किया गया था, जहां से वह पाकिस्तान के साथ लगती अंतरराष्ट्रीय सरहद पर निगरानी रखता था। वह तस्कर मनप्रीत सिंह और सुखवंत सिंह के संपर्क में रहता था और आगे से यह दोनों पाकिस्तान के शाह मूसा से बात करते थे।
ऐसे काम करता था मॉड्यूल
मॉड्यूल के काम करने का विवरण देते हुए दिनकर गुप्ता ने कहा कि नशे की खेप और हथियारों की फोटो पाकिस्तान से प्राप्त होने के बाद मनप्रीत सिंह और सुखवंत सिंह अपने मोबाइल फोन से सिपाही सुमित कुमार को भेजते थे। दूसरी और सुमित इधर से सरहदी कंटीली तार की तस्वीरें, उस स्थान का स्क्रीनशॉट, सरहदी पिल्लर के नंबर और इलाके के आसपास के गांवों का विवरण सरहद पार करने वाले तस्करों और सहयोगियों को भेजता था।
वे पाकिस्तानी तस्करों के साथ डिलीवरी के लिए तालमेल करते थे। डीजीपी ने कहा कि बाद में खेप की सुपुर्दगी के लिए पूर्व-निर्धारित तारीख और समय पर पाकिस्तानी तस्करों द्वारा अपना आदमी आमतौर पर दोपहर को स्थान की टोह लेने और सुमित से संपर्क स्थापित करने भेजा जाता था। उन्होंने कहा कि फिर उसी रात ही पाकिस्तानी तस्कर सिपाही सुमित कुमार की शिफ्ट ड्यूटी के दौरान पहले से निर्धारित जगह पर आते थे और लाइट के सिग्नल के रूप में सुमित से हरी झंडी मिलने के बाद ड्रग व हथियारों की खेप को सरहद की बाड़ के ऊपर से फेंक देते थे।
सुमित बाद में इस खेप को प्राप्त कर नजदीकी झाड़ियों में छिपा देता था। बाद में सुमित अगली शिफ्ट के दौरान अगले दिन सुबह 9 से दोपहर 12 बजे तक अपने साथियों के दिशा-निर्देशों पर अपने गार्ड टावरों से लगभग 50 मीटर की दूरी पर यह खेप सौंप देता था।