सेलरी में बांट दिया सरकार से मिला विकास का रुपया

शिमला। नवंबर की तनख्वाह के लिए नगर निगम सदन से पारित करवाए गए डिपाजिट वर्क की एफडी को प्री मेच्योर करवाने के फैसले को एमसी ने बदल दिया है। तनख्वाह देने के लिए अब एफडी को नहीं तोड़ा गया है। प्रदेश सरकार ने शहर के विकास के लिए नगर निगम को साढ़े पांच करोड़ की ग्रांट जारी की है। विकास के लिए मिली इस राशि से अब एमसी प्रशासन ने ढाई करोड़ की राशि निकालकर तनख्वाह दी है।
डिपाजिट वर्क की एफडी को बचाकर नगर निगम को फिलहाल राहत जरूर मिल गई है लेकिन डेवलपमेंट के लिए प्रदेश सरकार द्वारा दी गई 5.56 करोड़ की ग्रांट में से ढाई करोड़ तनख्वाह में खर्च कर एमसी की किरकिरी भी हुई है। ग्रांट के तहत जारी की गई राशि को प्रदेश सरकार ने नगर निगम को कार्य विशेष के लिए दिया है। इस राशि को विकास कार्यों के अलावा कहीं दूसरी जगह खर्च नहीं किया जा सकता। लेकिन नगर निगम को अफसरों और कर्मचारियों के वेतन के लाले पड़ गए हैं। इस स्थिति में कभी ग्रांट को वेतन पर खर्च किया जा रहा है तो कभी एफडी तोड़कर जुगाड़ किया जा रहा है।
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नौ करोड़ 70 लाख की देनदारी
नगर निगम की कुल देनदारियां नौ करोड़ 70 लाख रुपये है। निगम के मुख्य खातों में शेष राशि करीब 31.34 लाख रुपये है। कर्मचारियों का वेतन नेट सेलरी के सहारे चल रहा है लेकिन ग्रास सेलरी के तौर पर निगम पर देनदारी लंबित है। नगर निगम शिमला में 1298 अधिकारी और कर्मचारी हैं। इनमें नियमित कर्मियों के अलावा कांट्रेक्ट और डेलीवेज पर रखे गए कर्मी भी शामिल हैं। इसके अलावा पेंशन, सीपीएस अंशदान की राशि का भी मासिक भुगतान करना पड़ता है। इस पर मासिक दो करोड़ 56 लाख की राशि खर्च होती है।

हाउस टैक्स मिले तो नहीं रहेगी दिक्कत : मेयर
मेयर संजय चौहान का कहना है कि हाउस टैक्स की वसूली नहीं होने के चलते आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा है। मामला राज्य सरकार से उठाया गया है। उम्मीद है जल्द ही हल निकल आएगा। उन्होंने कहा कि इस बार तनख्वाह देने के लिए एफडी प्री मेच्योर करवाने के बजाय ग्रांट से कुछ राशि निकाली गई है। इसकी भरपाई करने के लिए एमसी प्रयासरत है। मेयर ने शहर के लोगों से भी अपील की है कि वे हाउस टैक्स जमा करवाने में अपनी सहभागिता बढ़ाएं।

हाउस टैक्स में फंसा नई-पुरानी प्रणाली का पेंच
किसी समय मुंबई नगर निगम को उधार देने वाले नगर निगम की आर्थिक हालत 2012 में खस्ता हो गई है। इसका सबसे बड़ा कारण हाउस टैक्स की वसूली नहीं होना बताया जा रहा है। यूनिट एरिया मेथड और पुरानी पद्धति के पेंच के कारण शहर में इस साल टैक्स वसूली नहीं हो पाई। एमसी को हाउस टैक्स से सालाना करीब छह करोड़ और प्रापर्टी टैक्स से चार करोड़ की आय होती है।

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