- पत्नी व चार बच्चों की हत्या करने वाले शख्स की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदला
- महाराष्ट्र में 2005 में हत्या का मामला, कोर्ट ने कहा- दोषी क्षमादान का हकदार नहीं
- कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ ने आरोपी को पूरी उम्र जेल रखने का दिया आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर आधारित मामलों में फांसी की सजा सुनाना खतरे से खाली नहीं है, जब तक कि परिस्थितिजन्य साक्ष्य की बुनियाद ठोस सबूत पर आधारित हो। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भले ही अपराध जघन्य हो और उसे सोझी समझी रणनीति के तहत अंजाम दिया गया हो लेकिन फांसी की सजा सुनने से पहले अदालत को दोषी की सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि, उम्र, अपराध के वक्त उस व्यक्ति की भावनात्मक रूप से परेशानी आदि चीजों पर गौर करना चाहिए।
यह नृशंस घटना को साल 2005 में महाराष्ट्र के नांदेड़ में अंजाम दिया गया था। सुदाम नामक शख्स ने अपनी पत्नी व अपने चार बच्चों की हत्या कर दी थी। बच्चों की उम्र दो से 10 वर्ष के बीच थी। इन सभी की लाशें अलग-अलग जगहों से मिली थी। वारदात के बाद सुदाम फरार था। घटना के करीब एक महीने बाद पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया था। मामले के मुताबिक, सुदाम और अनिता, पति और पत्नी के तौर पर रह रहे थे। कुछ सालों बाद पता चला कि अनिता को पता चला कि सुदाम पहले से ही विवाहित था और मुक्ताबाई उसकी पत्नी है। अनिता ने इस संबंध का विरोध किया तो तीनों के बीच विवाद हो गया।
पुलिस के मुताबिक, सुदाम ने मुक्ताबाई को 15000 रुपये देकर तलाक ले लिया। इसके बाद मुक्ता अपने गांव चली गई। वहीं सुदाम, अनिता व चार बच्चों के साथ अपने गांव चला गया था। दो बच्चे पहली शादी से थे। लेकिन संबंधों में खराबी आने से परेशान सुदाम ने अनिता व चार बच्चों की हत्या कर दी। निचली अदालत ने सुदाम को हत्या का दोषी करार देते हुए फांसी की सजा सुनाई थी। इसके बाद हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने भी फांसी की सजा को बरकरार रखा था। इसके बाद सुदाम ने पुनर्विचार याचिका दायर की थी। जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने उसकी फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया।