राजनीति की भेंट चढ़ी एंटी हेलगन

रोहडू। सेब के बागीचों को ओलावृष्टि से बचाने के लिए वर्ष 2011 में स्थापित की गई एंटी हेलगन राजनीतिक खींचतान की भेंट चढ़ गई है। खड़ा पत्थर में स्थित राडार तकनीकी खराबी के कारण बीते एक साल से कार्य नहीं कर रहा है। राडार की खराबी के कारण हेलगन आटोमैटिक रूप से नहीं चल रही है। उद्यान विभाग के अधिकारी अंदाजे में मैनुअल रूप से गन को चला रहे हैं।
मार्च 2011 में 2.89 करोड़ रुपये की लागत से जुब्बल-कोटखाई क्षेत्र के बटाड़गलू, बड़ैंओघाट व देवरी घाट में तीन हेलगन तथा खड़ापत्थर में एक राडार डिवाइस कंट्रोल रूम स्थापित किया गया था। ओलावृष्टि की संभावना होने पर राडार से संकेत मिलते हैं तथा उसके बाद एंटी हेलगन आटो रूप से चलना शुरू होती है, लेकिन एक साल से राडार खराब पड़ा है। बटाड़गलु में स्थित हेल गन को तो चलाया ही नहीं जा रहा है। देवरीघाट व बड़ैंओघाट में गनों को अंदाजे में मैनुअल रूप से चलाया जा रहा है। दिन के समय तो गन को अंदाजे में जैसे तैसे चलाया जाता है, लेकिन देर रात ओलावृष्टि को रोकने के लिए गन नहीं चल पाती है। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने एंटी हेलगन को असफल बताकर भाजपा पर जमकर प्रहार किए। सत्ता परिवर्तन के बाद इसे हटाने की भी घोषणा की। अब राजनीतिक खींचतान में राडार को ठीक करने के लिए कोई भी कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। वहीं इस संबंध में उद्यान विभाग के विषयवाद विशेषज्ञ डॉ. नरेश मेहता ने माना कि तकनीकी खराबी के कारण राडार कार्य नहीं कर रहा है। गन को मैनुअल रूप से चलाया जा रहा है।
उठ रहे हैं सवाल
अब सवाल यह उठता है कि अगर एंटी हेलगन ओलावृष्टी को रोकने में सफल है तो बीते एक साल से खराब रडार को ठीक क्यों नहीं किया गया? परीक्षण के तौर पर लगी गन का विस्तार क्यों नहीं किया गया? अगर हेलगन कारगर नहीं है, तो उसे चलाया क्यों जा रहा है?

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