यह लॉबिंग है या दलाली!

(वीरेन्द्र खागटा )कारोबार का अपना कायदा होता है और इसमें साख का बड़ा महत्व होता है। साख से ही कारोबारी और ग्राहक के रिश्ते बनते हैं। मगर लगता है कि भारत के इस पारंपरिक तौर-तरीके से वालमार्ट जैसी दिग्गज अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनी वाकिफ नहीं है। 500 अरब डॉलर से अधिक के भारतीय खुदरा बाजार पर नजर गड़ाने वाली वालमार्ट ने अपने पक्ष में गोलबंदी करने के लिए सवा सौ करोड़ रुपये फूंक दिए।

अमेरिकी सीनेट को दी गई अपनी रिपोर्ट में उसने जो ब्योरे दिए हैं, उसके मुताबिक वह पिछले चार साल से यह काम कर रही थी और चाहती थी कि किसी भी तरह भारत का बाजार उसके लिए खोल दिया जाए। बेशक, यह अपने व्यावसायिक हितों को साधने के लिए खर्च की गई रकम है, और अमेरिका में इस तरह की लॉबिंग को वैधता प्राप्त है।

मगर भारत में वालमार्ट की बेताबी और उसके तौर तरीके संदिग्ध लगते हैं। यह रकम उसने अमेरिकी संसद सदस्यों, अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधियों और अमेरिकी विदेश विभाग को प्रभावित करने के लिए खर्च की। यही नहीं, उसने भारत में एफडीआई पर चल रही बहसों को प्रभावित करने के लिए भी रकम खर्च की है।

ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या मल्टी ब्रांड खुदरा में एफडीआई का दरवाजा खोलने के लिए यूपीए सरकार पर किसी तरह का दबाव था? आखिर वे कौन लोग हैं, जिन्हें वालमार्ट ने प्रभावित किया और धन दिया? उनमें कितने भारतीय शामिल हैं? पिछले वर्ष एफडीआई का फैसला टालने के बाद से यूपीए सरकार को जिस तरह से अंतरराष्ट्रीय मीडिया और साख एजेंसियों की आलोचनाएं झेलनी पड़ी थीं, क्या वह उस पर दबाव बनाने का हथकंडा था?

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