मिड-डे-मील पर छाया संकट

थानाकलां (ऊना)। प्रदेश की सरकारी पाठशालाओं में मिड-डे-मील योजना को सुचारु रूप से चलाए रखना शिक्षकों के वश में नहीं रहा है। योजना पर रसोई गैस की बढ़ी कीमतों की मार पड़ने लगी है। एक स्कूल में महीने में एक ही रसोई गैस सिलेंडर मिल रहा है। यह अधिक छात्र संख्या वाले स्कूलों के लिए नाकाफी है। दर्जनों बच्चों को खाना पकाने के लिए अधिक गैस खर्च हो रही है। कई स्कूलों में तो शिक्षक अपने घर के गैस कनेक्शन के हिस्से से सिलेंडर का जुगाड़ कर रहे हैं। अध्यापकों का कहना है कि रसोई गैस की कीमतें बढ़ जाने के कारण छात्रों के लिए दोपहर का खाना बनाना कठिन हो रहा है। सरकार की ओर से प्रति छात्र की दर से जो पैसे निर्धारित किए गए हैं, वह आसमान छू रही महंगाई के आगे बहुत ही कम हैं। प्रदेश सरकार की ओर से वर्ष 2004 में मिड-डे-मील को सरकारी पाठशालाओं में आरंभ किया था। उसी समय से चालीस पैसे प्रति छात्र खाना बनाने के लिए निर्धारित किए गए थे। अध्यापकों का आरोप है कि वर्ष 2004 के बाद रसोई गैस के दाम कई बार बढ़ चुके हैं, लेकिन खाना पकाने के लिए बजट को सात-आठ वर्ष बाद भी बढ़ाया नहीं गया है। वर्ष 2004 में सिलेंडर की कीमत 335 रुपये थी। अब यह 1230 रुपये के करीब है। लेकिन, योजना पुरानी कीमतों पर ही चल रही है, जोकि सरासर गलत है। राजकीय प्राथमिक शिक्षक संघ के प्रवक्ता महेश शारदा कहते हैं कि कई बार तो शिक्षकों को अपनी जेब से खर्च करना पड़ रहा है। इस संदर्भ में खंड शिक्षा अधिकारी रामदास का कहना है कि यह मामला प्रदेश सरकार के ध्यानार्थ लाया गया है। शीघ्र ही खाना बनाने की दर को बढ़ाया जा सकता है।

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