भारत में अमेरिका और चीन के बाद सबसे अधिक कैंसर मरीज, निगरानी की कमी को दूर करने ICMR बनाएगा नीतियां

भारत में अमेरिका और चीन के बाद सबसे अधिक कैंसर मरीज, निगरानी की कमी को दूर करने ICMR बनाएगा नीतियां

अमेरिका और चीन के बाद दुनिया में सबसे ज्यादा कैंसर मरीज भारत में है। 2020 में 1.93 करोड़ नए कैंसर मरीज सामने आए हैं, जिनमें 14 लाख से अधिक भारतीय हैं। इतना ही नहीं, भारत में सालाना बढ़ते कैंसर मामलों के चलते 2040 तक इनकी संख्या में 57.5 फीसदी तक की बढ़ोतरी होने की आशंका है।

यह जानकारी साझा करते हुए नई दिल्ली स्थित भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने कहा है कि देश के अधिकांश क्षेत्रों में कैंसर की सही निगरानी नहीं हो पा रही है, जिसका गंभीर परिणाम यह भी है कि अधिकांश मामलों में बीमारी का देरी से पता चल रहा है। देश के सभी शोध केंद्रों को पत्र लिख आईसीएमआर ने कैंसर की जांच और निगरानी को आसान बनाने के लिए प्रस्ताव मांगे हैं। इसमें बताया कि देश के सभी जिलों में कैंसर निगरानी और जांच को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य अनुसंधान के तहत नई नीति बनाने के लिए आईसीएमआर को जिम्मेदारी सौंपी है। इसके लिए अलग-अलग शोध टीमें गठित होंगी और भौगोलिक व स्वास्थ्य सेवाओं की मौजूदा स्थिति के आधार पर वैज्ञानिक तथ्य एकत्रित किए जाएंगे। आईसीएमआर ने सभी शोध केंद्रों से कहा है कि वे अपने प्रस्ताव वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. तनवीर कौर को भेज सकते हैं।

उप्र में सबसे ज्यादा तो लक्षद्वीप में सबसे कम मरीज
आंकड़े बताते हैं कि कैंसर से भारत में साल 2020 में 7,70,230 वर्ष 2021 में 7,89,202 और 2022 में 8,08,558 लोगों की कैंसर से मौत हुई है। देश में कैंसर के मामलों की कुल संख्या साल 2022 में 14,61,427 रही। वहीं, 2021 में यह 14,26,447, जबकि 2020 में 13,92,179 रही। सबसे ज्यादा कैंसर के मरीज उत्तर प्रदेश में हैं। यहां साल 2020 में इनकी संख्या 2,01,319 थी, जबकि 2021 में 2,06,088 और 2022 में 2,10,958 मरीज मिले। वहीं, सबसे कम कैंसर मरीज केंद्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप में हैं। यहां 2020 में 27, जबकि 2021 और 2022 में 28-28 मरीज मिले हैं।

कुछ ही जिले नियमों पर दे रहे ध्यान
पत्र में आईसीएमआर ने लिखा कि भारत में एक चुनौती कैंसर स्क्रीनिंग की कम कवरेज है। केवल कुछ ही जिले स्वास्थ्य मंत्रालय के दिशानिर्देशों के अनुसार स्क्रीनिंग को प्रभावी ढंग से लागू कर रहे हैं, जबकि मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (आशा) जैसे फ्रंटलाइन स्वास्थ्य कार्यकर्ता घर-घर जाकर कैंसर स्क्रीनिंग कर सकते हैं। इसे बढ़ावा देने और सही प्रशिक्षण देकर जमीनी स्तर पर बदलाव लाए जा सकते हैं।

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