बेशकीमती नाग छतरी को नहीं मिला संरक्षण

रोहड़ू। क्षेत्र के जंगलों में नाग छतरी का अवैध दोहन जारी है। अवैज्ञानिक दोहन से बेशकीमती जड़ी-बूटी के संरक्षण को लेकर अभी तक वन विभाग ने सख्त कदम नहीं उठाए हैं। बर्फ पिघलने के बाद डोडरा क्वार, जाखी, गवास, खशधार और डेडर के जंगलों में नाग छतरी की पत्तियां निकलते ही लोगों ने अवैध तरीके से दोहन शुरू कर दिया है। कुछ प्रभावशाली लोग नेपाली मजदूरों की सहायता से इसका दोहन करवा रहे हैं। वन विभाग पांच साल बाद एक बीट या रेंज में स्थानीय लोगों को ही जड़ी बूटी खोदने की अनुमति देता है। वहीं मजदूरों से खुदाई की भी कोई अनुमति नहीं होती।
वन विभाग की ओर से स्थानीय लोगों के लिए जड़ी बूटी के खोदने का समय अक्तूबर से दिसंबर के बीच निर्धारित होता है। इसको खोदने के वैज्ञानिक तरीके भी विभाग ही लोगों को समझाता है, लेकिन बेशकीमती जड़ी बूटी के अवैध दोहन का कारोबार वन विभाग के नियमों को ठेंगा दिखा रहा है।
क्या है नाग छतरी
नाग छतरी को ट्राइलियम गोवानियनम या सतुआ के नाम से जाना जाता है। इसका पौधा चार हजार मीटर से अधिक की ऊंचाई पर मिलता है। लोकल बाजार में नाग छतरी को दो से तीन हजार रुपये प्रति किलो में खरीदा जा रहा है। वहीं विदेशों में निर्यात करने वाले इसके दाम 15 से 20 हजार रुपये प्रति किलो बताते हैं। चीन इसका बड़ा आयात करने वाले देश माना जाता है।
किस काम आती है नाग छतरी
नाग छतरी का भारत में विशेष रूप से प्रयोग नहीं किया जाता। दिल्ली से इसका सबसे अधिक निर्यात चीन को होता है। औषधि विशेषज्ञ बताते हैं कि इसका प्रयोग हर्बल टानिक, च्वनप्राश और यौवन शक्ति बढ़ाने वाली दवाइयों में किया जाता है।
इस संबंध में डीएफओ रोहड़ू अशोक चौहान का कहना है कि वन विभाग की ओर से केवल डोडरा क्वार रेंज में नाग छतरी के दोहन की अनुमति है। वहां भी वैज्ञानिक तरीके से स्थानीय लोग इसका दोहन कर सकते हैं। यदि अन्य क्षेत्र में इसका दोहन चल रहा तो तुरंत कार्रवाई की जाएगी। प्रतिबंधित क्षेत्र में जड़ी बूटी की खुदाई अपराध है।

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