पौराणिक परंपरा से मनाएंगे अन्नकूट मेला

गुप्तकाशी। केदारनाथ मंदिर में पूजा-अर्चना को लेकर आयोजित तीर्थ पुरोहित समाज संगठन केदारसभा की बैठक में अन्नकूट मेले को पहले की तरह पौराणिक परंपरानुसार मनाने पर बल दिया गया। इस दिन मंदिर में भगवान शिव की पूजा-अर्चना करने की अनुमति देने की मांग प्रशासन से की गई।
अध्यक्ष महेश बगवाड़ी की अध्यक्षता में हुई बैठक में सावन माह में भगवान शिव की पूजा-अर्चना न होने पर खेद जताया गया। संगठन के दस लोगाें को अन्नकृूट मेले से पहले धाम जाने की अनुमति देने की मांग की गई ताकि मेले का आयोजन पूर्व की भांति किया जा सके। समिति ने 11 सितंबर से पूर्व तीर्थ पुरोहित, हक-हकूकधारियाें के सौ सदस्यीय दल को धाम में जाने की भी अनुमति देने की मांग की। जिससे वे मंदिर में पूजा-अर्चना शुरू होने से पहले आवश्यक व्यवस्थायें कर सकें। बैठक में महामंत्री महेश शुक्ला, माधव कर्नाटकी, राजकुमार तिवारी, कुबेर पोस्ती समेत कई तीर्थ पुरोहित उपस्थित थे।

क्या है अन्नकूट मेला
अन्नकूट (भतूज) मेला रक्षा बंधन की पूर्व संध्या पर शिवालयों में मनाया जाता है। इस दौरान शिवलिंग को पके चावलों से अलंकृत कर ढक दिया जाता है। साल में यही अवसर होता है जब रात को मंदिरों के कपाट श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ मध्यरात्रि को खोल दिए जाते हैं। मान्यता है कि जब भगवान शिव ने विश्व के कल्याण हेतु हलाहल पिया था तो इस विष अग्नि को विभिन्न वन औषधियों और अन्न रस से शांत किया था। प्रतीक रुप से अन्न को आज भी चढ़ाया जाता है। माना जाता है कि नए अनाज में विष की मात्रा होती है जिसे शिव अवशोषित कर लेते हैैं। इसीलिए भगवान को अर्पित पके चावलों को प्रसाद रूप में वितरित नही किया जाता है। केदारनाथ में इस मेले का काफी महत्व है।

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