पीजीआई चंडीगढ़ ने किया खुलासा, कोरोना के खिलाफ कारगर है बीसीजी टीका

पीजीआई चंडीगढ़ ने किया खुलासा, कोरोना के खिलाफ कारगर है बीसीजी टीका

चंडीगढ़
पीजीआई डॉक्टरों की स्टडी इंटरनेशनल जरनल में हुई प्रकाशित
विश्वभर के देशों को दो वर्गों में विभाजित कर किया अध्ययन
पहली श्रेणी में बीसीजी टीकाकरण वाले देश शामिल
दूसरी श्रेणी में टीकाकरण न करने वाले देश शामिल

कोरोना संक्रमण को रोकने में बीसीजी टीके के सकारात्मक परिणाम को लेकर विश्वभर में अध्ययन जारी है। इसी क्रम में पीजीआई चंडीगढ़ के विशेषज्ञ ने भी अध्ययन कर कोरोना से बचाव में बीसीजी टीकाकरण के सकारात्मक परिणाम का दावा किया है। अध्ययन में पीजीआई के विशेषज्ञ ने विश्वभर के देशों को दो वर्गों में बांटा है। इसमें 1 वर्ग में बीसीजी टीकाकरण होने वाले देश को शामिल किया गया है और दूसरे में ना होने वाले देश को।

दोनों वर्गों में शामिल देशों में कोरोना संक्रमण, उससे होने वाली मौतों और रिकवरी रेट के आंकलन के आधार पर परिणाम सामने आया है। इसमें बताया गया है कि जिन देशों में बीसीजी का टीकाकरण किया जा रहा है उसकी तुलना में ना होने वाले देशों में मरीजों की मौत की संख्या ज्यादा है। रिकवरी रेट भी बहुत कम है। अध्ययन के परिणाम स्वरूप विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना वायरस से बचाव की वैक्सीन आने तक बीसीजी का प्रयोग कर संक्रमण से बचाव का प्रयास किया जा सकता है। पीजीआई में हुए इस अध्ययन को साइंस डायरेक्ट इंटरनेशनल जनरल में अक्टूबर में प्रकाशित किया गया है।

भारत में 72 साल से इस्तेमाल हो रहा बीसीजी का टीका 
भारत में 72 साल से बीसीजी के टीके का इस्तेमाल हो रहा है। पीजीआई में हुए अध्ययन के अनुसार अमेरिका और इटली जैसे जिन देशों में बीसीजी टीकाकरण की पॉलिसी नहीं है, वहां कोरोना के मामले भी ज्यादा सामने आ रहे हैं और मौतें भी ज्यादा हो रही हैं। वहीं भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश जैसे देशों में मौतें कम हुई हैं। 

क्या है बीसीजी… जानना जरूरी 
इसका पूरा नाम है बेसिलस कामेट गुएरिन। यह टीबी और सांस से जुड़ी बीमारियों को रोकने वाला टीका है। बीसीजी को जन्म के बाद से छह महीने के बीच लगाया जाता है। दुनिया में सबसे पहले इसका 1920 में इस्तेमाल हुआ। भारत में इसका टीकाकरण अनिवार्य है। 

बीसीजी का टीका ऐसे करता है काम 
इस टीके में बैक्टिरियम की वे स्ट्रेन्स होती हैं जो इंसानों में फेफड़ों की टीबी का कारण है। इस स्ट्रेन का नाम मायकोबैक्टिरियम बोविस है। टीका बनाने के दौरान एक्टिव बैक्टीरिया की ताकत घटा दी जाती है ताकि ये स्वस्थ लोग को बीमारी न कर सके। इसे मेडिकल की भाषा में एक्टिव इनग्रेडिएंट कहा जाता है। इसके अलावा वैक्सीन में सोडियम, पोटेशियम और मैग्नीशियम साल्ट, ग्लिसरॉल और साइट्रिक एसिड होता है। टीबी से बचाने के लिए जन्म से 15 दिन के भीतर बच्चे को बीसीजी का टीका लगाया जाता है। यह टीका कई और संक्रामक बीमारियों से भी बच्चे को बचाता है। 

कोविड की मारक क्षमता कम करता है बीसीजी
अध्ययन में यह बात सामने आई है कि भारत और चीन जैसे देश, जहां के राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम में बीसीजी शामिल है, वहां कोरोना से मृत्यु दर कम रहा है। टीकाकरण वाले देशों में संक्रमण की रफ्तार कम होने के साथ ही रिकवरी रेट ज्यादा है। यह टीका रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाकर वायरल इंफेक्शन से बचाव में सहायक साबित होता है। 

विकसित देश रह गए पीछे
अध्ययन में बीसीजी के परिणामस्वरूप विकसित देश विकासशील देश से पीछे नजर आ रहे हैं। यूके, इटली, स्पेन, अमेरिका की जनता में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम और भारत, अफगानिस्तान, नेपाल, भूटान, पाकिस्तान, बांग्लादेश में ज्यादा मिली है।

इन्होंने किया अध्ययन
पीजीआई के न्यूरोलॉजी व फार्माकोलॉजी विभाग के डॉ. केआर शर्मा, डॉ. जी बत्रा, डॉ. एम कुमार, डॉ. ए मिश्रा, डॉ. आर सिंगला, डॉ. ए सिंह, डॉ. आर एस सिंह और डॉ. बी मेबी शामिल हैं। 
बीसीजी को लेकर विश्वभर में अध्ययन चल रहा है। पीजीआई के डॉक्टरों ने भी इस पर अध्ययन किया है। इसका सकारात्मक परिणाम आया है। प्रो. जगतराम, निदेशक पीजीआई चंडीगढ़।

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