पाकिस्तान में स्थापित है भारत का पहला शक्तिपीठ

पुराणों के मतानुसार भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्र प्रजापति दक्ष कश्मीर घाटी के हिमालय क्षेत्र में रहते थे। उनकी पुत्री सती ने अपने पिता की इच्छा के विरूद्ध भगवान शंकर से विवाह किया था। माता सती और भगवान शंकर के विवाह उपरांत राजा दक्ष ने एक विराट यज्ञ का आयोजन किया लेकिन उन्होंने अपने दामाद और पुत्री को यज्ञ में निमंत्रण नहीं भेजा।

फिर भी सती अपने पिता के यज्ञ में पहुंच गई। लेकिन दक्ष ने पुत्री के आने पर उपेक्षा का भाव प्रकट किया और शिव के विषय में सती के सामने ही अपमानजनक बातें कही। सती के लिए अपने पति के विषय में अपमानजनक बातें सुनना हृदय विदारक और घोर अपमानजनक था। यह सब वह बर्दाश्त नहीं कर पाई और इस अपमान की कुंठावश उन्होंने वहीं यज्ञ कुंड में कूद कर अपने प्राण त्याग दिए।

जब भगवान शिव को माता सती के प्राण त्यागने का ज्ञात हुआ तो उन्होंने क्रोध में आकर वीरभद्र को दक्ष का यज्ञ ध्वंस करने को भेजा। उसने दक्ष का सिर काट दिया। इसके बाद दुखी होकर सती के शरीर को अपने सिर पर धारण कर तांडव नृत्य करने लगे। पृथ्वी समेत तीनों लोकों को व्याकुल देख कर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र द्वारा माता सती के शरीर के टुकड़े टुकड़े करने शुरू कर दिए।

इस प्रकार सती के शरीर का जो हिस्सा और धारण किए आभूषण जहां-जहां गिरे वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आ गए। देवी भागवत में 108 शक्तिपीठों का जिक्र है, तो देवी गीता में 72 शक्तिपीठों का जिक्र मिलता है। देवी पुराण में 51 शक्तिपीठों की चर्चा की गई है। वर्तमान में भी 51 शक्तिपीठ ही पाए जाते हैं। कुछ शक्तिपीठ  पाकिस्तान, बांगलादेश और श्रीलंका में भी स्थित हैं।

भारत के ही भाग रहे पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में हिंगोल नदी के किनारे अघोर पर्वत पर माता हिंगलाज भवानी का मंदिर है। यह मंदिर बलूचिस्तान राज्य की राजधानी कराची से 120 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में हिंगोल नदी के तट के ल्यारी तहसील के मकराना के तटीय क्षेत्र में हिंगलाज में स्थित है। यह प्रदेश पाकिस्तान और अफगानिस्तान की सीमा पर है। मान्यता है कि माता सती के शरीर का पहला टुकड़ा अर्थात सिर का एक भाग यहीं अघोर पर्वत पर गिरा था। इस स्थान को हिंगलाज, हिंगुला,कोटारी और ‘नानी का मंदिर’ नाम से जाना जाता है।

इस मंदिर का र्निमाण मनुष्य के द्वारा नहीं बल्कि प्राकृतिक रूप से हुआ है। इस पहाड़ी गुफा में देवी माता मस्तिष्क रूप में विराजित है। शास्त्रों के मतानुसार इस शक्तिपीठ को आग्नेय तीर्थ कहा गया है। चैत्र नवरात्र में इस स्थान पर महीने भर तक विशाल मेले का आयोजन होता है। इस मंदिर की विशेष बात यह है कि यहां के पुजारी मुस्लिम धर्म के हैं।

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