नए युग की शुरूआत, सेना का मनोबल बढ़ेगा, लेकिन गुणवत्ता जरूरी

नए युग की शुरूआत, सेना का मनोबल बढ़ेगा, लेकिन गुणवत्ता जरूरी

जालंधर/अमृतसर (पंजाब)
अर्थशास्त्री बोले- भारत की अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक असर होगा, घरेलू उद्योग बढ़ेगा

रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर एक मजबूत कदम बढ़ाते हुए भारत ने असॉल्ट राइफल, आर्टिलरी गन, राडार, हल्के जंगी हेलीकॉप्टर जैसे 101 रक्षा सामानों के आयात पर रोक लगा दी है। भारत अब अपनी जरूरत के इन सामानों और हथियारों को खुद बनाएगा। भारत सरकार के इस कदम को एक क्रांतिकारी कदम बताया जा रहा है और इससे सेना के रिटायर अधिकारी खासे उत्साहित हैं। वहीं अर्थशास्त्रियों का तर्क है कि देश अब आत्मनिर्भरता की राह पर है और इससे घरेलू उद्योगों को फायदा मिलने वाला है।

रिटायर कर्नल व सैनिक वेलफेयर बोर्ड के पूर्व डिप्टी डायरेक्टर मनमोहन सिंह का कहना है कि यह एक सराहनीय व क्रांतिकारी कदम है लेकिन हमें भारतीय सेना के हथियारों की गुणवत्ता और विश्वसनीयता पर जोर देकर रखना होगा। भारत अब आर्टिलरी गन, जमीन से हवा में मार करने वाली छोटी दूरी की मिसाइलें, शिप से छोड़ी जा सकने वाली क्रूज मिसाइलें, असॉल्ट राइफल, हल्के लड़ाकू हेलीकॉप्टर, राडार, बैलेस्टिक हेलमेट, बुलेट प्रूफ जैकेट और ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट का आयात नहीं करेगा और नई रक्षा नीति और आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत इन्हें अपने देश में ही बनाएगा, इस कदम से सेना के जवानों में उत्साह बढ़ेगा।
सीमा सुरक्षा बल के रिटायर अधिकारी अजीत सिंह का कहना है कि भारत सरकार का यह क्रांतिकारी कदम है। यह एक नये अध्याय की शुरुआत है, जिसका परिणाम पांच साल के भीतर ही दिखने को मिल जाएगा। सैन्य क्षेत्र में कितना ही कुछ है जो अभी बाहर से आता है लेकिन रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने आत्मनिर्भर भारत अभियान को आगे बढ़ाते हुए ऐसा एलान कर दिया, जिससे दुश्मन का कांपना तय है।

हमारी सेना व फोर्स तमाम हथियार बाहर से मंगवाती रही है लेकिन भारत में तैयार होने से सेना व सुरक्षा बल के जवानों में एक अलग तरह का उत्साह देखने को मिलेगा, जब स्वदेशी हथियारों से देश की सुरक्षा करेंगे। इससे आने वाले चार सालों में भारत की सैन्य नीति और विदेश नीति में खासे बदलाव देखने को मिलेंगे क्योंकि मशीनगन से लेकर मिसाइल तक भारतीय कंपनियां बनाएंगी।

अर्थशास्त्री और एडवोकेट दिनेश सरना का कहना है कि यह भारत की उभरती अर्थव्यवस्था की एक नई तस्वीर है। हथियारों की खरीद में भारत से खरबों रुपये विदेश जाते हैं लेकिन अगर यह पैसा भारत में रहेगा तो इसके दो फायदे होंगे एक तो भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी, वहीं दूसरी तरफ भारत आत्मनिर्भर बनेगा और विदेश पर निर्भरता खत्म हो जाएगी। यह बदलते भारत की एक नई फिल्म की शुरूआत है। भारत में जब हथियार तैयार होने शुरू होंगे तो छोटे-छोटे घरेलू उद्योगों भी इसके साथ प्रफुल्लित होंगे।

एक शुभ संकेत है
आत्मनिर्भर भारत अभियान में कदम से कदम मिलाकर चलने वाले रक्षा मंत्रालय ने 101 उपकरणों के आयात पर रोक लगाकर एक बड़ी घोषणा की है। केंद्र सरकार दिसंबर 2020 से दिसंबर 2025 तक इस पर चरणबद्ध अमल करेगी। यह एक शुभ संकेत है। इस मकसद की पूर्ति के लिए आगामी 5-7 साल में घरेलू रक्षा उद्योग को करीब 4 लाख करोड़ रुपये के ठेके मिलेंगे।

पंजाब को इसका लाभ तभी मिल सकेगा जब कारखाने यहां स्थापित होंगे। कैप्टन अमरिंदर सिंह को केंद्र की इस घोषणा को प्रदेश में अमली जामा पहनाने के लिए अधिकारियों की एक टीम का गठन कर अभी से प्रयास शुरू कर देने चाहिए। पंजाब में लगने वाले किसी भी कारखाने से कैप्टन सरकार की घर-घर नौकरी का वादा भी पूरा होगा। -प्रो. संदीप शर्मा, अर्थशास्त्री, डीएवी कॉलेज , अमृतसर

भारत शीर्ष वैश्विक रक्षा सामग्री उत्पादन कंपनियों के लिए सबसे आकर्षक बाजारों में से एक है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) ने 2016 में एक साथ 104 उपग्रह अंतरिक्ष में प्रक्षेपित करके विश्व-इतिहास रचा था। दुनिया के किसी एक अंतरिक्ष अभियान में इससे पूर्व इतने उपग्रह एकसाथ कभी नहीं छोड़े थे। यह उपलब्धि इसरो ने अनेक वैश्विक चुनौतियों का सामना करते हुए पाई थी।

बावजूद चुनौतियां कम नहीं रही थीं। क्योंकि एक समय ऐसा भी था, जब अमेरिका के दबाव में रूस ने क्रायोजनिक इंजन देने से मना कर दिया था। दरअसल प्रक्षेपण यान का यही इंजन वह अश्व-शक्ति है, जो भारी वजन वाले उपग्रहों को अंतरिक्ष में पहुंचाने का काम करती है। फिर हमारे पीएसएलएसवी मसलन भू-उपग्रह प्रक्षेपण यान की सफलता की निर्भरता भी इसी इंजन से संभव थी।

भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा की गई खोज से रक्षा उपकरणों के उत्पादन में मदद मिलेगी। देश की विदेश पूंजी बचेगी। केंद्र सरकार उन राज्यों में रक्षा उपकरण के कारखाने लगाने को प्रोत्साहित करे, जहां पहले ही उद्योग कम है। इससे उन राज्यों में बेरोजगारी खत्म होगी। – प्रो. बलराम सिंह यादव, अर्थशास्त्री, डीएवी कॉलेज

 

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