देश की दर्जन भर कंपनियां बनाने लगीं संक्रमण जांच किट

नई दिल्ली

कोच्चि में कलमासीरी मेडिकल कॉलेज अस्पताल से ठीक होने के बाद घर लौटते मरीज।

भारत ने आरटी पीसीआर से लेकर एंटीबॉडी रैपिड जांच की किट तक बना डालीं।
दिल्ली सहित कई राज्यों में स्वदेशी किट्स से कोरोना की जांच जारी।
सप्ताह में दो से तीन लाख का उत्पादन, दो महीने बाद 5 गुना ज्यादा हो सकती है वृद्धि।

सीमित संसाधनों के बावजूद महामारी से लड़ाई को हमारे वैज्ञानिकों ने और भी मजबूत कर दिया है। महज 30 दिन के भीतर ही इन्होंने दर्जनभर से ज्यादा जांच किट तैयार कर दी हैं, जो विदेशों की तुलना में न सिर्फ सस्ती हैं, बल्कि आधे से भी कम समय में संक्रमण का पता लगा सकती हैं।
दिल्ली, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और मध्य प्रदेश सहित देश के अलग-अलग हिस्सों में इन स्वदेशी किट्स के जरिए मरीजों की पहचान और सर्विलांस दोनों ही काम शुरू हो चुके हैं। इतना ही नहीं 20 से ज्यादा स्वदेशी किट्स को मान्यता देने के लिए पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वॉयरोलॉजी (एनआईवी) में लगातार ट्रायल जारी है।

भारत में मार्च के पहले सप्ताह में वायरस संक्रमितों की संख्या बढ़ने पर वैज्ञानिकों की एक उच्चस्तरीय कमेटी गठित हुई। उन्होंने महज दो दिन में ही कोरोना को लेकर हर संभव शोध के लिए सभी विकल्प आसान बना दिए। फिर चाहे वह संसाधन से जुड़ा हो या फिर आर्थिक सहायता हो। इसी का नतीजा रहा कि महीनेभर में ही वैज्ञानिक जांच किट्स और पीपीई किट्स बनाने में जुट गए। अन्य वैज्ञानिकों ने वायरस की पहचान और इलाज का जिम्मा संभाला।

आरटी-पीसीआर जांच के लिए नई मशीन
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के सचिव डॉ. आशुतोष शर्मा ने बताया कि तिरुवनंतपुरम स्थित श्रीचित्रा इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस एंड टैक्नोलॉजी में चार वर्ष पहले एक प्रयोगशाला स्थापित की गई थी। जहां वैज्ञानिक और इंजीनियर दोनों मिलकर काम करते हैं।

वायरस की पुष्टि के लिए एक आरटी पीसीआर जांच होती है लेकिन देश में पीसीआर मशीन ने बहुत ज्यादा नहीं है। एक मशीन करीब 15 लाख रुपये की आती है। इसकी जांच में करीब 2 घंटे का वक्त भी लगता है। एक सैंपल की जांच में करीब 2 से ढाई हजार रुपये लगते हैं लेकिन अब तिरुवनंतपुरम लैब ने एक दूसरी तरह की मशीन विकसित की है।

इसकी कीमत दो से ढाई लाख रुपये के आसपास होगी। इसकी जांच की कीमत एक हजार रुपये के आसपास पड़ेगी। महज 10 मिनट में ही यह वायरस का पता लगा लेगी। अभी एनआईवी की टीम इसकी गुणवत्ता पर काम कर रही है।

20 से ज्यादा किट्स को मान्यता देने का चल रहा है काम
दो महीने बाद 5 गुना से ज्यादा उत्पादन: उच्चस्तरीय कमेटी के एक सदस्य और विज्ञान मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं कि 12 से ज्यादा स्वदेशी किट्स इस्तेमाल में लाई जा रही हैं। इनका उत्पादन शुरूआती चरण में है। सप्ताह में करीब 3 लाख तक किट्स तैयार हो रही हैं लेकिन अगले दो महीने में प्रति सप्ताह इनका उत्पादन 5 गुना से भी ज्यादा होगा।

हर किट्स पर 50 सैंपल का ट्रायल
एनआईवी के एक वैज्ञानिक बताते हैं कि आरटी पीसीआर और एंटीबॉडी रैपिड टेस्ट दोनों ही तरह की स्वदेशी किट्स की गुणवत्ता जांचने के बाद ही मान्यता दी जा रही है। हर किट पर कम से कम 50 सैंपल से जांच की जा रही है। अभी तक 23 एंटीबॉडी जांच किट्स को मान्यता मिली है इसमें तकरीबन 40 फीसदी (9 किट्स) भारत में निर्मित हैं।

हरियाणा, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, मुंबई और दिल्ली में इन किट्स को तैयार किया है। इसके अलावा 31 आरटी पीसीआर जांच किट्स को मंजूरी मिली है। जबकि 14 किट्स 16 अप्रैल को ही संतोषजनक मिली हैं इनमें से 50 फीसदी यानी सात किट भारत की हैं।

जांच के बाद ही कर रहे इस्तेमाल
वायरस की जांच किट्स की गुणवत्ता जांचने के लिए आईसीएमआर और पुणे एनआईवी की टीम काम कर रही है। इनसे मंजूरी मिलने के बाद ही किट्स को इस्तेमाल में लाया जा रहा है फिर चाहे वह विदेशी हो या फिर भारतीय।
दिल्ली में माय लैब किट्स के जरिए जांच की जा रही है, यह देश की पहली कमर्शियल किट है जिसे मंजूरी मिलने के बाद अब उत्पादन बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है। ताकि विदेशों में भी इन्हें निर्यात किया जा सके।

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