जिस्पा बांध पर समिति के तेवर तीखे

केलांग। रोहतांग दर्रा समेत ऊंचाई वाले रिहायशी इलाकोें में हो रही हल्की बर्फबारी के बीच प्रस्तावित तीन सौ मेगावाट की जिस्पा बांध परियोजना को लेकर एचपीसीएल ने गतिविधियां तेज कर दी हैं। ऑफ सीजन में प्रदेश पावर कार्पोरेशन लिमिटेड के वाहनों की घाटी में आवाजाही बढ़ने से लोगों ने भी परियोजना के विरोध को लेकर कमर कस ली है।
प्रदेश सरकार ने 300 मेगावाट क्षमता की जिस्पा बांध परियोजना एचपीसीएल को अलाट की है। बांध के बनने से तोद घाटी की करीब 750 बीघा जमीन समेत करीब 70 घर पानी में डूब जाएंगे। जिस्पा बांध संघर्ष समिति चार साल से परियोजना का विरोध कर रही है। अब इस मौसम में एचपीसीएल की गतिविधियां बढ़ने से ग्रामीण चिंतित हो उठे हैं।
जिस्पा बांध संघर्ष समिति राय लेकर परियोजना के खिलाफ कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की तैयारी में है। समिति के अध्यक्ष रवि ठाकुर और संयोजक रिगजिन समफेल हायरपा ने कहा कि विद्युत परियोजना के नाम पर जनजातीय लोगों को अपनी मिट्टी से किसी भी कीमत पर जुदा नहीं होेने दिया जाएगा। कहा कि शुक्ला कमेटी की रिपोर्ट में भी स्पष्ट कहा है कि 7 हजार फुट की ऊंचाई पर बांध का निर्माण करना तर्क संगत नहीं। रिपोर्ट में कहा गया है कि कांगड़ा के साथ ही लाहौल घाटी जोन-5 में पड़ता है। लिहाजा भूकंप की दृष्टि से अति संवेदनशील क्षेत्र में बांध का निर्माण किया जाना खतरे से खाली नहीं।
रवि ठाकुर ने कहा कि परियोजना के लिए बनने बाली टनलों के निर्माण से सिंचाई और पेयजल की सैकड़ों साल पुराने जलस्रोत नष्ट हो जाएंगे। संयोजन रिगजिन समफेल हायरपा ने कहा कि विरोध के बावजूद एचपीसीएल और प्रदेश सरकार परियोजना बनाने पर अड़े रहे तो ऐसे में उन्हें मजबूरन इसके खिलाफ कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ेगा।
एचपीसीएल के एमडी शुभाशीष पांडा का कहना है कि जिस्पा बांध परियोजना को राष्ट्र महत्व के लिए घोषित किया है। परियोजना निर्माण को लेकर फिलहाल सर्वेक्षण और डीपीआर का काम चल रहा है।

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