जंक फूड का इस्तेमाल जानलेवा, लिवर में पहुंचा रहा क्षति, महंगे स्कूलों के बच्चे अधिक पीड़ित

जंक फूड का इस्तेमाल जानलेवा, लिवर में पहुंचा रहा क्षति, महंगे स्कूलों के बच्चे अधिक पीड़ित

बच्चों को बेहद पसंद आने वाला जंक फूड उनके शरीर को बेहद छोटी उम्र में बड़ा नुकसान कर रहा है। हैदराबाद में हुए नए अध्ययन में सामने आया है कि यहां के महंगे निजी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों में इसकी वजह से मोटापा और नॉन-एल्कोहॉलिक फैटी लिवर रोग (एनएएफएलडी) सरकारी स्कूलों के बच्चों के मुकाबले कहीं ज्यादा मिल रहा है।

करीब 1,100 बच्चों पर किए गए इस अध्ययन के अनुसार निजी स्कूलों के 50 से 60 प्रतिशत बच्चों में यह रोग घर कर चुका है, इनमें से कुछ बच्चों की उम्र तो महज 8 साल है। इस रोग में लिवर में अत्याधिक वसा जमा होने लगती है जो धीरे धीरे नॉन-एल्कोहॉलिक स्टीटोहेपेटाइटिस (एनएएसएच) बीमारी में बदल जाती है। इस अवस्था में लिवर में सूजन आ सकती है। अधिकतर पीड़ित बच्चों में इसके लक्षण नजर नहीं आता, उन्हें पीलिया तक नहीं होता। केवल अचानक बढ़ते वजन से इसे पहचाना जा सकता है। इस रोग की पहचान के लिए अल्ट्रासाउंड करवाना होता है, तो कुछ मामलों में लिवर फंक्शन टेस्ट के लिए भी बच्चों को कहा जा रहा है।

यह खाना-पीना खतरनाक
शोध के अनुसार सोडा, चॉकलेट, नूडल्स, बिस्कुट, जैसे प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थ पीड़ित बच्चे सबसे ज्यादा ले रहे थे। वहीं पिज्जा, बर्गर, अत्याधिक नमक, चीनी व फैट्स से बने उत्पादों को भी इसी सूची में रखा जाता है। चिकित्सकों के अनुसार मोटापा सीधे तौर पर एनएएफएलडी से जुड़ा है। इसके शिकार बच्चों में सबसे पहले मोटापा आता है, खासतौर पर संभ्रांत घरों के बच्चों में यह मामले मिल रहे हैं। सरकारी स्कूलों के बच्चों में यह मामले तुलनात्मक रूप से कहीं कम हैं।

बच्चों के अकादमिक प्रदर्शन पर भी पड़ता है गहरा असर
लिवर में सूजन से शारीरिक गतिविधियों में शामिल होने में बच्चों की रुचि घट जाती है और धीरे-धीरे अकादमिक प्रदर्शन भी गिरने लगता है। उम्र बढ़ने के साथ इन बच्चों की पीढ़ी भविष्य में सिरोसिस या लिवर कैंसर जैसे रोगों की चपेट में भी आ सकती है। एनएएफएलडी आमतौर पर अमेरिका और यूरोप के स्कूली बच्चों में ज्यादा मिलता रहा है, लेकिन अब भारत में भी यह बच्चों को अपनी चपेट में ले रहा है। इस सबसे बड़ी वजह वह जंक फूड है जो जिसे बच्चे खा रहे हैं।

अधिकतर बच्चों को बेहद पसंद आने वाला जंक फूड उनके शरीर को बेहद छोटी उम्र में बड़ा नुकसान कर रहा है। हैदराबाद में हुए नए अध्ययन में सामने आया है कि यहां के महंगे निजी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों में इसकी वजह से मोटापा और नॉन-एल्कोहॉलिक फैटी लिवर रोग (एनएएफएलडी) सरकारी स्कूलों के बच्चों के मुकाबले कहीं ज्यादा मिल रहा है।

करीब 1,100 बच्चों पर किए गए इस अध्ययन के अनुसार निजी स्कूलों के 50 से 60 प्रतिशत बच्चों में यह रोग घर कर चुका है, इनमें से कुछ बच्चों की उम्र तो महज 8 साल है। इस रोग में लिवर में अत्याधिक वसा जमा होने लगती है जो धीरे धीरे नॉन-एल्कोहॉलिक स्टीटोहेपेटाइटिस (एनएएसएच) बीमारी में बदल जाती है। इस अवस्था में लिवर में सूजन आ सकती है। अधिकतर पीड़ित बच्चों में इसके लक्षण नजर नहीं आता, उन्हें पीलिया तक नहीं होता। केवल अचानक बढ़ते वजन से इसे पहचाना जा सकता है। इस रोग की पहचान के लिए अल्ट्रासाउंड करवाना होता है, तो कुछ मामलों में लिवर फंक्शन टेस्ट के लिए भी बच्चों को कहा जा रहा है।

यह खाना-पीना खतरनाक
शोध के अनुसार सोडा, चॉकलेट, नूडल्स, बिस्कुट, जैसे प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थ पीड़ित बच्चे सबसे ज्यादा ले रहे थे। वहीं पिज्जा, बर्गर, अत्याधिक नमक, चीनी व फैट्स से बने उत्पादों को भी इसी सूची में रखा जाता है। चिकित्सकों के अनुसार मोटापा सीधे तौर पर एनएएफएलडी से जुड़ा है। इसके शिकार बच्चों में सबसे पहले मोटापा आता है, खासतौर पर संभ्रांत घरों के बच्चों में यह मामले मिल रहे हैं। सरकारी स्कूलों के बच्चों में यह मामले तुलनात्मक रूप से कहीं कम हैं।

बच्चों के अकादमिक प्रदर्शन पर भी पड़ता है गहरा असर
लिवर में सूजन से शारीरिक गतिविधियों में शामिल होने में बच्चों की रुचि घट जाती है और धीरे-धीरे अकादमिक प्रदर्शन भी गिरने लगता है। उम्र बढ़ने के साथ इन बच्चों की पीढ़ी भविष्य में सिरोसिस या लिवर कैंसर जैसे रोगों की चपेट में भी आ सकती है। एनएएफएलडी आमतौर पर अमेरिका और यूरोप के स्कूली बच्चों में ज्यादा मिलता रहा है, लेकिन अब भारत में भी यह बच्चों को अपनी चपेट में ले रहा है। इस सबसे बड़ी वजह वह जंक फूड है जो जिसे बच्चे खा रहे हैं।

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