चुनाव प्रचार के दौरान बागवान नेताओ से पूछेंगे यह सवाल, हलके में लिया तो आगे सोच समझकर मांगे वोट

चुनाव प्रचार के दौरान बागवान नेताओ से पूछेंगे यह सवाल, हलके में लिया तो आगे सोच समझकर मांगे वोट

प्रदेश के बागवान ही नहीं बल्कि देश में सभी सेब उत्पादक राज्य के बागवान चिंतित है अब देश के विभिन्न राज्य के बागवान संगठन आपसी मेलझोल बढाकर एक पटल पर आकर इस मांग का मसौदा तैयार करने में लगे है

हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ सेब बागवान दर्द से कराह रहा है। दर्द है विदेशी सेब के कारण घरेलू सेब की घटती मांग व कीमत और कीटनाशक व दवाइयां महंगा मिलना। विदेशी सेब के आयात पर सौ फीसदी आयात शुल्क लगाने की  उत्पादकों की मांग एक मुद्दा बन चुकी है जिस पर सरकार का कुछ कहना है तो बागवानों का कुछ। कीटनाशकों व दवाओं पर सब्सिडी खत्म होने से बागवान खफा हैं। बागवानों का कहना है कि हिमाचल में सेब उत्पादन की लागत लगातार बढ़ रही है, लेकिन उनकी आमदनी में उस अनुपात में इजाफा नहीं हो रहा। प्रदेश में लगभग 5,000 करोड़ की सेब आर्थिकी है। बागवान सालों से विदेशी सेब पर 100 फीसदी आयात शुल्क लगाने की मांग कर रहे हैं, लेकिन मामले की हमेशा ही अनदेखी हुई है। विदेश से आयात होने वाले सेब के कारण मार्केट में हिमाचली सेब की मांग घट जाती है। बागवानों को नुकसान होता है।

प्रदेश सरकार का कहना- विदेशी सेब के आयात के विषय में केंद्र को लिखा
देश में तुर्किए से सबसे ज्यादा सेब आता है। अमेरिका, ईरान, अफगानिस्तान, न्यूजीलैंड, चिली, ब्राजील जैसे देशों से भी सेब आयात हो रहा है। ईरान का सेब अवैध रूप से भारत पहुंच रहा है। साफ्टा (दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र) के चलते बिना शुल्क चुकाए अफगानिस्तान के रास्ते ईरानी सेब भारत पहुंचता है। कम खर्चे में ईरानी सेब के भारत पहुंचने से हो रही स्पर्धा में हिमाचली सेब नहीं टिक पा रहा है और अच्छे दाम नहीं मिल पाते। प्रदेश सरकार दावा करती रही है कि यह मामला केंद्र सरकार के समक्ष लगातार उठाया जाता रहा है। केंद्रीय वाणिज्य मंत्री को पत्र लिखा जा चुका है, लेकिन समस्या जस की तस है।

100 फीसदी आयात शुल्क लगाने के बाद रुकेगा विदेशी सेब 
भाजपा की नीतियों से सेब की खेती घाटे का सौदा बन गई है। ईरान का सेब अफगानिस्तान के रास्ते भारत आ रहा है लेकिन कोई रोक नहीं है। मोदी जब भी हिमाचल आए सेब पर आयात शुल्क 100 फीसदी करने का वादा तो कर गए, लेकिन उसे पूरा करना भूल ही गए। – राकेश सिंघा, पूर्व विधायक संयोजक, सेब उत्पादक संघ

बागवान चार चुनावों से विदेशी सेब पर आयात शुल्क सौ फीसदी करने की मांग उठा रहे हैं, मगर सरकारें गंभीर नहीं हैं। मंडी मध्यस्थता योजना के लिए मौजूदा सरकार ने बजट खत्म कर दिया है। पीएम वोकल फॉर लोकल की बात तो करते हैं, पर इसे धरातल पर लागू नहीं किया जा रहा है। – हरीश चौहान, संयोजक संयुक्त किसान मंच

हम लाए थे 1300 कराेड़ का शिवा प्रोजेक्ट : महेंद्र सिंह

प्रदेश के सात ऐसे जिलों जहां सेब नहीं होता है, वहां के लिए एशियन डेवलपमेंट बैंक के सहयोग से 1,300 करोड़ का शिवा प्रोजेक्ट पूर्व भाजपा सरकार लाई थी। कांग्रेस ने सरकार बनते ही प्रोजेक्ट रद्द करने की मांग की है। पूर्व कांग्रेस सरकार ने इटली के सूखे सेब के पौधे बागवानों को दिए गए। कांग्रेस के समय व्यापक भ्रष्टाचार हुआ। -महेंद्र सिंह, पूर्व बागवानी मंत्री 

चार साल में 6000 हेक्टेयर में शुरू होगी बागवानी 

परवाणू में मार्केटिंग यार्ड, सीए स्टोर, प्रोसेसिंग प्लांट और सोलन, पराला, रोहड़ू, जरोल टिक्कर में मार्केटिंग यार्ड बनाए गए। पराला प्रोसेसिंग प्लांट में जूस के अलावा वाइन भी बनेगी। इस सीजन से वजन के हिसाब से यूनिवर्सल कार्टन में सेब पैकेजिंग स्टैंडर्ड पर बिकेगा। शिवा प्रोजेक्ट के तहत 4 साल में 1,300 करोड़ से 6000 हेक्टेयर में बागवानी शुरू होगी। – जगत सिंह नेगी, बागवानी मंत्री

सौभाग्य की बात है कि प्रदेश को बागवानी विकास के लिए 2016 से 2024 तक रिकाॅर्ड पैसा मिला है। विश्व बैंक पोषित प्रोजेक्ट के तहत 1134 करोड़ और एशियन डेवलपमेंट बैंक प्रोजेक्ट के तहत 1,700 करोड़ रुपये मिले हैं। इतना पैसा मिलने पर भी देखने में आया है कि व्यापक स्तर पर न तो कोई नई तकनीक आई और न ही भविष्य के लिए भी कोई नई टेक्नोलॉजी विकसित हो पाई है, जो दुर्भाग्यपूर्ण है। – डाॅ. विजय सिंह ठाकुर, पूर्व कुलपति, बागवानी विवि नौणी

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