चिकित्सा जगत के लिए नई चुनौती, चार दिन में आए दो ऐसे मामले

नई दिल्ली

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कम एंटीबॉडी वाले लोगों को फिर से संक्रमित कर रहा है वायरस
चार दिनों में दो मामले सामने आए, इसलिए सतर्क रहने की जरूरत
विस्तार
दिल्ली में कोविड-19 से दोबारा संक्रमित होने के मामले नई चुनौती पेश कर सकते हैं। बीते चार दिनों में ऐसे दो मामले सामने आए हैं, जहां संक्रमण से ठीक होने के बाद भी दो लोग दोबारा पॉजिटिव हो गए।

डॉक्टरों का कहना है कि दोबारा संक्रमण को लेकर अभी कोई शोध नहीं हुआ है, जिससे यह कहा जा सके कि एंटीबॉडी बनने के बाद भी कोई मरीज कैसे संक्रमित हो गया है। माना जा रहा है कि कम एंटीबॉडी बनने या शरीर में वायरस के मौजूद होने से दोबारा संक्रमण का खतरा हो सकता है।
दोबारा संक्रमित होने का पहला मामला हिंदूराव अस्पताल में सामने आया था। अस्पताल में काम करने वाली एक नर्स डेढ़ महीने में दूसरी बार संक्रमित मिली थी। इस नर्स की एंटीजन और आरटी-पीसीआर जांच में संक्रमण की पुष्टि हुई थी।
हालांकि, महिला में एंटीबॉडी होने पर भी वह संक्रमित हो गई। इस मामले में डॉक्टरों का कहना था कि दोबारा संक्रमित होने का कारण यह हो सकता है कि महिला के शरीर में मृत कोरोना वायरस हो, जो जांच के समय पहचान में आ गया।

दूसरा मामला बृहस्पतिवार का है, जहां दिल्ली पुलिस का एक कर्मचारी संक्रमण से ठीक होने के 15 दिन बार दोबारा पॉजिटिव पाया गया है। जांच में इसके शरीर में कोरोना के खिलाफ एंटीबॉडी नहीं मिली थी।

एम्स के मेडिसन विभाग के डॉक्टर बिक्रम के मुताबिक, अभी तक ऐसा कोई शोध नहीं हुआ है कि जिसमें यह कहा गया हो कि एक व्यक्ति ठीक होने के बाद दोबारा संक्रमित हो सकता है। जब तक व्यक्ति के शरीर में पर्याप्त एंटीबॉडी हैं वह संक्रमित नहीं हो सकता।

अपोलो अस्पताल के डॉक्टर यश के मुताबिक, एक व्यक्ति के शरीर में 5 से 15 दिन में एंटीबॉडी बनने लग जाती है। जरूरी नहीं है  कि यह हमेशा ही व्यक्ति में मौजूद रहे। इसलिए ठीक होने वाले लोगों को भी पूरी सावधानी बरतनी चाहिए।

आगे संक्रमण फैले, इसकी संभावना न के बराबर
सफदरजंग अस्पताल के डॉक्टर जुगल किशोर ने बताया कि कई बार जांच में खामियों के चलते परिणाम गलत भी आ जाते हैं। हो सकता है जो लोग पहले पहले संक्रमित मिले हों उनकी रिपोर्ट गलत हो। उन्होंने कहा कि दोबारा संक्रमित हुए लोगों से संक्रमण आगे फैलेगा, इसकी संभावना न के बराबर है। क्योंकि, इन लोगों में वायरस का प्रभाव बहुत हल्का रहता है।

ऐसे में अगर ये किसी के संपर्क में आ भी जाते हैं तो उन लोगों में संक्रमण फैलने की गुंजाइश बहुत कम है। साथ ही कम एंटीबॉडी वाले लोग दोबारा से संक्रमित हो, ऐसा भी जरूरी नहीं है। अगर व्यक्ति के अंदर बीमारी की रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो गई है तो वह संक्रमित नहीं होगा। यह समझना जरूरी है कि एंटीबॉडी और रोग प्रतिरोधक क्षमता दोनों अलग-अलग मामले हैं।

 

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