चांद से सिर्फ 140 किमी दूर चंद्रयान-2, आज यान को चांद की एक और निचली कक्षा में ले जाएगा इसरो

 नई दिल्ली
मिशन कंट्रोल रूम (इसरो)
मिशन कंट्रोल रूम (इसरो)

खास बातें

  • देश का दूसरा महत्वाकांक्षी चंद्र मिशन चंद्रयान-2 चांद के बेहद पास पहुंच गया है
  • चंद्रयान-2 ऑर्बिटर चंद्रमा की मौजूदा कक्षा में लगातार चक्कर काट रहा है
  • इसरो के अध्यक्ष ने कहा कि चांद पर लैंडर के उतरने का क्षण ‘खौफनाक’ होगा
चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर से लैंडर विक्रम के अलग होने के एक दिन बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने मंगलवार को बताया कि उसने यान को चांद की निचली कक्षा में उतारने का पहला चरण सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है। 7 सितंबर को चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग से पहले बुधवार को यान को एक और निचली कक्षा में ले जाया जाएगा। इससे यह चांद के और करीब पहुंच जाएगा।

इसरो ने बताया कि चंद्रयान को भारतीय समयानुसार सुबह 8:50 बजे पर निचली कक्षा में पूर्व निर्धारित योजना के तहत उतारा गया। यह प्रक्रिया कुल चार सेकेंड की रही। चंद्रयान-2 ऑर्बिटर चांद की मौजूदा कक्षा में लगातार चक्कर काट रहा है और ऑर्बिटर व लैंडर पूरी तरह से ठीक हैं।

चार सितंबर को भारतीय समयानुसार तड़के 3 बजकर 30 मिनट से लेकर 4 बजकर 30 मिनट के बीच इसकी कक्षा में कमी की गई। इससे पहले, सोमवार को लैंडर विक्रम ऑर्बिटर से सफलतापूर्वक अलग हुआ था। अगर सब कुछ ठीक रहा तो विक्रम और उसके भीतर मौजूद रोवर ‘प्रज्ञान’ के शनिवार देर रात 1 बजकर 30 मिनट से 2 बजकर 30 मिनट के बीच चांद की सतह पर उतरने की उम्मीद है।

चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग के बाद रोवर उसी दिन सुबह 3 बजकर 30 मिनट से 6 बजकर 30 मिनट के बीच निकलेगा और चांद की सतह पर रहकर परीक्षण करेगा।

14 दिन परीक्षण करेगा ‘प्रज्ञान’

इसरो के मुताबिक, प्रज्ञान एक चंद्र दिवस यानी पृथ्वी के 14 दिनों के बराबर चांद की सतह का परीक्षण करेगा। लैंडर का मिशन एक चंद्र दिवस होगा, जबकि ऑर्बिटर एक साल तक काम करेगा। इसरो के अध्यक्ष के. सिवन ने कहा कि चांद पर लैंडर के उतरने का क्षण ‘खौफनाक’ होगा क्योंकि एजेंसी ने पहले ऐसा कभी नहीं किया है जबकि चंद्रयान-1 मिशन में यान को निचली कक्षा में ले जाने का काम पहले भी सफलतापूर्वक किया गया था।

भारत बनेगा चौथा देश

चांद पर सफलतापूर्वक सॉफ्ट लैंडिंग के साथ ही भारत ऐसा करने वाला दुनिया का चौथा देश बन जाएगा। इससे पहले केवल चीन, अमेरिका और रूस ही ऐसा कर सके हैं। भारत ने 22 जुलाई को 3,840 किलोग्राम वजनी चंद्रयान-2 को जीएसएलवी मैक-3 रॉकेट से प्रक्षेपित किया था। इस योजना पर कुल 978 करोड़ रुपये की लागत आई है।

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