उत्तराखंड के पहाडों को ‘बर्बाद’ कर देगा अल्ट्राटेक

कोकाकोला का विवाद अभी पूरी तरह से ठंडा भी नहीं हो पाया था कि बुधवार को एक बार फिर से उत्तराखंड सरकार ने विकास के नाम पर एक और विवाद को न्यौता दे दिया।

त्यूनी और सोमेश्वर में प्लांट लगाने का करार

सीमेंट बनाने वाली कंपनी अल्ट्राटेक के साथ प्रदेश सरकार ने त्यूनी और सोमेश्वर में प्लांट लगाने का करार किया। अपर मुख्य सचिव राकेश शर्मा के मुताबिक ये प्लांट 35 लाख टन और 20 लाख टन प्रतिवर्ष की उत्तपादन क्षमता के होंगे और कंपनी करीब पांच हजार करोड़ रुपए का निवेश करेगी।

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प्रदेश सरकार ने ये एमओयू ऐसे समय में किया है जब आपदा से कराह रहा उत्तराखंड पर्यावरण को लेकर खासा संवेदनशील है। हाल ही में कोकाकोला के निवेश को भी इसी वजह से प्रदेश सरकार को ठंडे बस्ते में डालना पड़ा था।

सीमेंट उत्पादन प्रदेश के उद्योगों की नकारात्मक सूची में हैं और इस उद्योग का पर्यावरण पर प्रभाव भी जगजाहिर है। खास बात यह है कि सीमेंट उत्पादन में चूना पत्थर और रेत का उपयोग जमकर होता है और त्यूनी तथा सोमेश्वर दोनों ही चूना पत्थर की खानों के लिए भी जाने जाते हैं।

आशय पत्र भी जारी
अपर मुख्य सचिव के मुताबिक औद्योगिक विकास विभाग ने कंपनी को आशय पत्र भी जारी कर दिया है। अल्ट्राटेक सीमेंट त्यूनी में 35 लाख टन प्रतिवर्ष और सोमेश्वर में 20 लाख टन प्रतिवर्ष की क्षमता का प्लांट लगाएगी।

इस बार भी प्रदेश सरकार का ठीक वही तर्क है जो कोकाकोला करार के समय सामने रखा गया था। यह कि प्रदेश में भारी मात्रा में औद्योगिक पूंजी निवेश हो रहा है। कंपनी सामाजिक जिम्मेदारी कार्य के तहत कई और अवस्थापना विकास के कार्य करेगी और प्रदेश में बड़ी संख्या में रोजगार मिलेगा।

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दूसरी ओर सीमेंट उत्पादन से पर्यावरण और आसपास के वातावरण पर पड़ने वाले प्रभाव को यह कहकर निपटा दिया गया कि कंपनी पर्यावरण के सभी मानकों को पूरा करेगी। इस करार पर पर्यावरणविद् स्पष्ट नहीं हैं पर वे इसे सही फैसला भी नहीं मान रहे हैं।

पीपुल्स साइंस इंस्टीट्यूट के संस्थापक निदेशक रवि चोपड़ा ने कहा कि त्यूनी और सोमेश्वर के पर्यावरण को देखते हुए यह फैसला सही नहीं माना जा सकता।

पर्यावरण विद् चंडी प्रसाद भट्ट के मुताबिक 1984-85 में लोहाघाट में एक इसी तरह की परियोजना को स्थानीय लोगों ने विरोध करके बंद कराया था। इस समय भी देखना होगा कि परिस्थितियां क्या हैं। अल्मोड़ा सांसद प्रदीप टम्टा के मुताबिक अल्मोड़ा कृषि क्षेत्र है।

यह देखना होगा कि कंपनी कच्चा उत्पाद कहां से लेगी और करार में क्या-क्या है। इसके बाद ही कुछ कहा जा सकेगा।

सीमेंट और पर्यावरण
– सीमेंट उत्पादन की हर प्रक्रिया पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली साबित होती है। सीमेंट को बनाने के लिए चूना पत्थर और रेत को करीब 1400 डिग्री सेंटीग्रेड तक गरम करना होता है जिससे कार्बनडाइऑक्साइड गैस रिलीज होती है।

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यह गैस जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा कारण मानी जा रही है। थेलियम, कैडमियम और मरकरी जैसे भारी तत्व हवा में घुलते हैं। खनन के कारण आसपास के क्षेत्र को धूल और शोर प्रदूषण का सामना करना पड़ता है। सीमेंट अत्यधिक ऊर्जा का उपयोग करने वाला उद्योग भी है।

– अल्ट्राटेक सीमेंट आदित्य बिड़ला ग्रुप का है और इस समय उसका गुजरात में 48 लाख टन उत्पादन क्षमता का इसका सबसे बड़ा प्लांट हैं। इस हिसाब से देखा जाए तो उत्तराखंड में यह कंपनी अपना उत्पादन सीधे दोगुना करने की तैयारी में है। सीमेंट उत्पादन में चीन के बाद भारत दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है

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