आज ऑपरेशन ब्लू स्टार की 38वीं बरसी, अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में बढ़ाई गई सुरक्षा

आज ऑपरेशन ब्लू स्टार की 38वीं बरसी, अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में बढ़ाई गई सुरक्षा

अमृतसर

ऑपरेशन ब्लू स्टार की 38वीं बरसी आज है। इसी के मद्देनजर पंजाब पुलिस ने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में सुरक्षा बढ़ा दी है। 1984 में आज ही के दिन स्वर्ण मंदिर में ऑपरेशन ब्लू स्टार को अंजाम दिया गया था।

6 जून 1984 के दिन सिखों के सबसे पावन धार्मिक स्थल स्वर्ण मंदिर में भारतीय सेना की कार्रवाई ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार दुनिया भर में सुर्खियों में रही है। आज भी लोग इसे याद करके सिहर उठते हैं। मामला 1970 के दशक के अंत में अकाली राजनीति में खींचतान और अकालियों की पंजाब संबंधित मांगों को लेकर शुरू हुआ था। 1978 में पंजाब की मांगों पर अकाली दल ने आनंदपुर साहिब प्रस्ताव पारित किया था।

इस प्रस्ताव में सुझाव दिया गया था कि भारत की केंद्र सरकार का केवल रक्षा, विदेश नीति, संचार और मुद्रा पर अधिकार हो, अन्य सब विषयों पर राज्यों के पास पूर्ण अधिकार हों। वे ये भी चाहते थे कि भारत के उत्तरी क्षेत्र में उन्हें स्वायत्तता मिले। अकालियों की प्रमुख मांगें थीं- चंडीगढ़ पंजाब की राजधानी हो, पंजाबी भाषी क्षेत्र पंजाब में शामिल किए जाएं, नदियों के पानी के मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय की राय ली जाए।

इसके साथ वे यह भी चाहते थे कि ‘नहरों के हेडवर्क्स’ और पन-बिजली बनाने के मूलभूत ढांचे का प्रबंधन पंजाब के पास हो, फौज में भर्ती काबिलियत के आधार पर हो, इसमें सिखों की भर्ती पर लगी कथित सीमा हटाई जाए और अखिल भारतीय गुरुद्वारा कानून बनाया जाए। विश्लेषकों के मुताबिक, इंदिरा गांधी की सरकार को यह सब मंजूर नहीं था। सरकार और अकालियों के बीच यह मसला सुलझाने के लिए तीन बार बात हुई थी।
इस बीच अकाली कार्यकर्ताओं और निरंकारियों के बीच अमृतसर में 13 अप्रैल 1978 को हिंसक झड़प हुई। इस घटना को पंजाब में चरमपंथ की शुरुआत के तौर पर देखा गया। विश्लेषक मानते हैं कि शुरुआत में सिखों पर अकाली दल के प्रभाव को कम करने के लिए कांग्रेस ने सिख प्रचारक जरनैल सिंह भिंडरावाले को परोक्ष रूप से प्रोत्साहन दिया। इसके पीछे कांग्रेस का मकसद था कि अकालियों के सामने किसी संगठन या ऐसे व्यक्ति को खड़ा किया जाए, जो उनको मिलने वाले समर्थन में सेंध लगा सके।

अकाली दल भारत की राजनीतिक मुख्यधारा में रहकर पंजाब और सिखों की मांगों की बात कर रहा था, लेकिन उसका रवैया ढुलमुल माना जाता था। उधर, इन्हीं मुद्दों पर जरनैल सिंह भिंडरावाले ने कड़ा रुख अपनाते हुए केंद्र सरकार को दोषी ठहराना शुरू कर दिया। वे विवादास्पद राजनीतिक मुद्दों, धर्म और उसकी मर्यादा पर नियमित तौर पर भाषण देने लगे। बहुत से लोग उनके भाषणों को भड़काऊ मानते थे। वहीं कुछ लोगों का कहना था कि वे सिखों की जायज मांगों और धार्मिक मसलों की बात कर रहे हैं।

एक जून को भी स्वर्ण मंदिर परिसर और उसके बाहर तैनात पुलिसकर्मियों के बीच गोलीबारी हुई। दो जून से परिसर में हजारों श्रद्धालुओं ने जुटना शुरू कर दिया था, क्योंकि गुरुपर्व शुरू होने वाला था। जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश को संबोधित किया तो ये स्पष्ट हो गया कि स्थिति इतनी गंभीर हो चुकी है कि भारत सरकार कोई कार्रवाई कर सकती है। पंजाब से आने-जाने वाली रेलगाड़ियों और बस सेवाओं पर रोक लग गई, फोन कनेक्शन काट दिए गए और विदेशी मीडिया को राज्य से बाहर कर दिया गया।

तीन जून तक भारतीय सेना अमृतसर में प्रवेश करके स्वर्ण मंदिर परिसर को घेर चुकी थी। चार जून को सेना ने गोलीबारी शुरू कर दी, लेकिन चरमपंथियों की ओर से इतना तीखा जवाब मिला कि पांच जून को बख्तरबंद गाड़ियों और टैंकों का इस्तेमाल किया गया। भीषण खून-खराबा हुआ, अकाल तख्त पूरी तरह तबाह हो गया। स्वर्ण मंदिर पर गोलियां दागी गईं और ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण पुस्तकालय बुरी तरह जल गया। भारत सरकार के श्वेतपत्र के अनुसार 83 सैनिक मारे गए और 249 घायल हुए।

इसी श्वेतपत्र के अनुसार 493 चरमपंथी या आम नागरिक मारे गए, 86 घायल हुए और 1592 को गिरफ्तार किया गया। लेकिन इन सब आंकड़ों को लेकर अब तक विवाद चल रहा है। सिख संगठनों का कहना है कि स्वर्ण मंदिर में मरने वाले निर्दोष लोगों की संख्या भी हजारों में है। वहीं इस कार्रवाई से सिख समुदाय को बहुत ठेस पहुंची। कई प्रमुख सिख बुद्धिजीवियों ने सवाल उठाए कि स्थिति को इतना खराब क्यों होने दिया गया कि ऐसी कार्रवाई करने की जरूरत पड़ी।

ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद सिखों और कांग्रेस पार्टी के बीच दरार पैदा हो गई, जो उस समय और गहरा गई जब दो सिख सुरक्षाकर्मियों ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या कर दी। इसके बाद कांग्रेस और सिखों की बीच की खाई और चौड़ी हो गई। नतीजा, ऑपरेशन को 35 साल बीत जाने के बाद भी जख्म भरे नहीं हैं। आज भी बरसी के दिन स्वर्ण मंदिर में तलवारें लहराई जाती हैं। खालिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए जाते हैं। टकराव की स्थिति आज भी बरकरार है और तनावपूर्ण माहौल बना रहता है।

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