रूट पर उतारे बिना वापस भेजी नई बसें

शिमला। एचआरटीसी द्वारा जनता के पैसे से खरीदी गई चार बसें रूटों पर उतरे बिना ही वापस कंपनी को भेज दी गई हैं। शिमला लोकल डिपो के लिए करीब पचास लाख रुपये की लागत से इन बसों को खरीदा गया था। बसों के माडल में खामियों के चलते परिवहन विभाग ने इन्हें पास नहीं किया। करीब पांच महीने वर्कशाप में खड़ा रखने के बाद आखिरकार इन्हें वापस लौटा दिया गया है।
करोड़ों का घाटा झेल रहीं एचआरटीसी में जनता के पैसे की जमकर बेकदरी की जा रही है। बीते वर्ष अगस्त में खरीदी गई चार टाटा मार्कोपोलो बसें कंपनी को वापस भेज दी गई हैं। बीते करीब पांच महीनों से ये नई बसें एचआरटीसी वर्कशाप की शोभा बढ़ा रही थीं। शहर की सड़कों पर यह बसें कब चलना शुरू करेंगी, एचआरटीसी स्टाफ और शहर के लोगों को समान रूप से इसका इंतजार था। लेकिन ऐसा हुआ नहीं और चुपचाप इन बसों को वापस भेज दिया गया। वर्कशाप में खड़े रखने के स्थान पर यदि इन बसों को रूटों पर चलाया जाता तो कंगाली का रोना रो रहे एचआरटीसी को लाखों की आमदनी होती।

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क्यों नहीं हो पाया था माडल पास?
– बस में था केवल एक दरवाजा।
– चालक-परिचालक के सोने के लिए नहीं थी स्पेशल सीट।
– खिड़कियों के शीशों से सिर निकलने को नहीं थी जगह।
– छत पर चढ़ने के लिए सीढ़ी की नहीं थी व्यवस्था।
– बस के फर्श के नीचे प्लाई लगी थी, पानी के संपर्क में आने पर इसके सड़ने का खतरा था।
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बस खरीद में हुई गड़बड़ी की जांच मांगी
– हिमाचल परिवहन सर्व कर्मचारी यूनियन के प्रदेशाध्यक्ष विद्यासागर शर्मा व प्रदेश महासचिव खेमेंद्र गुप्ता के अनुसार बसाें की खरीद में हुई गड़बड़ी की न्यायिक जांच होनी चाहिए। बसें करीब पांच महीने वर्कशाप में खड़ी रहीं और फिर वापस भेज दी गईं। यह जनता के पैसे का सरासर दुरुपयोग है।
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खरीद में हुई अनियमितताओं की जांच होगी : ओंकार शर्मा
एचआरटीसी के प्रबंध निदेशक ओंकार शर्मा ने कहा कि बसों की खरीद में हुई अनियमितताओं की जांच की जाएगी। इस बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है, यह मामला मेरी नियुक्ति से पहले का है। हां यदि परिवहन विभाग ने बसों को पास करने से इंकार किया है तो साफ है कि बसों के डिजाइन में कोई खामी रही होगी।

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