बहनें दूल्हा बनकर ले आती हैं दुल्हनियां

उदयपुर (लाहौल-स्पीति)। दूल्हा किसी वजह से अपनी शादी में शामिल नहीं हो पाए तो घबराएं मत। यहां पर बहनें ही सिर पर टोपी और फूल लगाकर दुलहन ले आतीं हैं। सदियों पुरानी यह परंपरा लाहौल घाटी में आज भी कायम है। जिला लाहौल-स्पीति की लाहौल घाटी में छोटी शादियों का सीजन जोरों पर है।
खास यह है कि जिला की यह अनूठी परंपरा कई बार अचानक तो कई बार पूर्व नियोजित होती है। भारत के किसी भी कोने में होने वाली शादियों की तुलना मेें जनजातीय जिला लाहौल घाटी में होने वाली शादियों में यह अनूठी मिसाल आज भी कायम है।
घाटी में विवाह के दौरान महिलाओं को दूल्हा बनते देखा जा सकता है। यहां लोगों के लिए यह नई बात नहीं है लेकिन जिले से बाहर के लोगों के लिए आश्चर्य जरूर होगा। भाई की अनुपस्थिति में बहनें दूल्हे का रूप धरकर बैंडबाजे के साथ अपने घर वधू को लेकर आती हैं। इस अनूठी परंपरा की गवाह बनी मयाड़ घाटी की छिमे, पट्टन घाटी की विमला और बीना। बताया कि शादी के मुहूर्त पर भाई के घर पर न होने की सूरत में परंपरानुसार उन्होंने ही पारंपरिक अंदाज में दूल्हा बनकर भाभी को गृह प्रवेश करवाया।
विशेष परिस्थितियों में दूल्हे के छोटे भाई को भी शृंगार कर अपनी भाभी को लाने की इजाजत होती है। इतिहासकार छेरिंग दोरजे के अनुसार यह सदियों पुरानी परंपरा है। लाहौल घाटी में आज भी यह कायम है। लाहौल की बड़ी शादी, कूजी विवाह और छोटी शादी का रिवायत आज भी यहां चली आ रही है। छोटी शादी संभवत: अधिक खर्च से बचने की प्रवृति से पैदा हुई हो। किन्हीं परिस्थितियों में दूल्हे का छोटा भाई भी दूल्हा बनकर दुल्हन को ले आता है। लाहौल घाटी के शाम चंद और विनय राम ने बताया कि ऐसा नहीं है कि शादी के मौकों पर अचानक ही यह व्यवस्था करनी पड़ती है बल्कि पूर्व नियोजित तरीके से भी इस तरह की छोटी शादियों का प्रचलन जिले में है।

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