प्रोजेक्ट पर बंधे हैं सरकार के हाथ

कसया (कुशीनगर)। मैत्रेय ट्रस्ट के पलायन की स्थिति में सरकार के हाथ बंधे हैं। सरकार व मैत्रेय के बीच जो एमओयू (मेमोरेंडम आफ अंडरस्टैंडिंग) हुआ है, वह तो फिलहाल यही कह रहा है। 9 मई 2003 को राज्य सरकार के तत्कालीन संस्कृति सचिव राहुल भटनागर व मैत्रेय के ट्रस्टी नवीन जिंदल के बीच जो एमओयू हुआ है, उसमें लीक से हटकर मैत्रेय को अधिकार दिए गए हैं, किंतु परियोजना से पीछे हटने की स्थिति में कार्रवाई का कोई प्राविधान नहीं हुआ है।
एमओयू के तहत मैत्रेय को परियोजना की प्लानिंग, डेवलपमेंट, डिजाइन, निर्माण, पर्यावरण व सेवाएं आदि को लेकर संबंधित विभागाें से एनओसी, लाइसेंस या अनुमति लेने आदि से छूट दे दी गई। यहां तक की ट्रस्ट को अतिरिक्त जमीनें क्रय करने पर शुल्क आदि तथा सीलिंग के प्राविधानों से भी मुक्त कर दिया गया। मैत्रेय ट्रस्ट यदि किसी डेवलपर को जमीनें देता, तब भी यह प्राविधान लागू होते। 100 रुपये के स्टांप पर हुए करार के तहत सरकार ने मैत्रेय परियोजना को 659 एकड़ भूमि उपलब्ध कराने के साथ ही प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष फंड जेनरेट करने की भी छूट देते हुए प्रचलित कानूनी प्राविधानों के अंतर्गत केंद्र सरकार के विभागों से भी सहायता दिलाने की बात कही। सरकार ने जमीनों के लिए बजटीय प्राविधान करते हुए 110 करोड़ रिलीज भी कर दिए। वर्तमान में सरकार किसानों से बातचीत कर जमीनों का विवाद सुलझा ही रही थी कि इसी बीच मैत्रेय के परियोजना से पीछे हटने की बात सामने आ गई। ऐसे में सवाल उठने शुरू हो गए हैं कि जिस मैत्रेय परियोजना के चलते सरकार व किसान बीते दस सालों से सांसत झेल रहे हैं, पलायन की स्थिति में मैत्रेय के विरुद्ध सरकार का क्या रुख होगा?
इनसेट
जमीनों पर संस्कृति विभाग का कब्जा
परियोजना के लिए अधिग्रहित 659 एकड़ जमीनों को किसान भले ही जोत-बो रहे हैं, किंतु तकनीकी रूप से जमीनों पर संस्कृति विभाग का कब्जा है। विधिक प्राविधानों के अनुसार अधिग्रहण की अधिसूचना किसी भी प्रकार से निरस्त या संशोधित नहीं की जा सकती। ऐसे में जमीनों पर मालिकाना हक के लिए किसानों व सरकार के बीच कानूनी जंग के लंबे समय तक चलने का अंदेशा लगाया जा रहा है।
एमओयू में पलायन की स्थिति में कार्रवाई का भले ही उल्लेख न हो, किंतु भारतीय दंड विधान के अंतर्गत करार तोड़ने पर सरकार चाहे तो संबंधित ट्रस्टियों पर कार्रवाई कर सकती है।
रामानंद प्रसाद
फौजदारी मामलों के अधिवक्ता
जमीनों के भुगतान के लिए खाते में करीब 105 करोड़ शेष है। शासन से नया आदेश या गाइड लाइन नहीं मिली है। शासन का जैसा आदेश होगा, उसी के अनुरूप कार्रवाई की जाएगी।
डीएस उपाध्याय
एडीएम प्रशासन देवरिया/भू अध्याप्ति अधिकारी कुशीनगर।

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