
शिमला। हिमाचल मेडिकल अधिकारी संघ स्वास्थ्य सेवाएं निदेशक के निर्णय के खिलाफ खड़ा हो गया है। संघ ने सीएमओ के प्रिस्किप्शन ऑडिट के फैसले को उचित करार न देते हुए कहा कि इससे डाक्टर असमंजस में रहेंगे और ठीक से इलाज नहीं कर पाएंगे। ऐसा करने के बजाय गलत डाक्टरों पर सीएमओ को सीधी कार्रवाई करनी चाहिए, जो पूर्व में भी की जाती रही है।
संघ के महासचिव डा. जीवानंद चौहान और उपाध्यक्ष डा. यशपाल रांटा ने कहा कि इस निर्णय से चिकित्सकों में खासा आक्र ोश है। इससे मेडिकल अधिकारी मरीजों का ठीक से उपचार नहीं कर पाएंगे और अच्छी दवाएं लिखने से परहेज करेंगे। अंतत: मरीजों को नुकसान होगा। उन्होंने कहा कि सभी डाक्टरों को एक ही श्रेणी में डालना स्वास्थ्य निदेशक के स्तर पर गलत कदम है। डाक्टरों की प्रिस्किप्शन पर चैक लगाने के बजाय फार्मा कंपनियों पर केंद्र और राज्य सरकारों से प्रशासनिक स्तर पर ही नियंत्रण होना चाहिए।
‘10 रुपये की लागत वाली दवा 80 रुपये में’
शिमला। अगर मैन्युफै क्चरिंग कॉस्ट पांच से दस रुपये है, तो लैंडिंग कॉस्ट 10 से 15 रुपये हो सकती है, लेकिन यह हैरत की बात है कि इन दवाओं की कॉस्ट में 100 प्रतिशत से लेकर 800 प्रतिशत तक का अंतर पाया जा रहा है। इस हिसाब से 10 रुपये की लागत वाली एक ही दवा को अलग-अलग कंपनियां 10 रुपये से लेकर 80 रुपये तक उपलब्ध करवा रही हैं। यह जानकारी देते हुए आईजीएमसी शिमला के फैकल्टी डाक्टरों के संगठन सेमडीकॉट के अध्यक्ष अनिल ओहरी ने कहा कि अलग-अलग एमआरपी पर दवाओं को बेचने में के मिस्टों का भी दोष नहीं है, क्योंकि एमआरपी को डीजीडीसी ही नियंत्रित करता है। इसके लिए केंद्रीय और राज्य की कमेटी होनी चाहिए, जो एमआरपी को कंट्रोल करे।
