ढांगू-केहलवीं में आज भी बोली जाती है संस्कृत

हमीरपुर : भले ही आज आधुनिकता के दौर में जहां राष्ट्रीय भाषा हिंदी भी पूरे देश के राज्यों में नहीं बोली जाती तथा कम्प्यूटर शिक्षा व अंग्रेजी भाषा को ज्यादा तवज्जो दी जाती है लेकिन इसके बावजूद कई राज्यों में ऐसे भी दर्जनों गांव हैं जहां पर वही हजारों वर्ष पुरानी संस्कृत भाषा बोली जाती है और संस्कृत भाषा में ही एक-दूसरे को पत्राचार इत्यादि होता है। ऐसा ही एक गांव प्रदेश के बमसन क्षेत्र में ढांगू-कोहलवीं है जिसमें करीब 500 की आबादी है तथा करीब 100 घर हैं जिनमें आज भी संस्कृत भाषा में ही बातचीत होती है। यहां पर एक-दूसरे को अगर पत्राचार करना हो तो वह भी संस्कृत भाषा में ही किया जाता है। इसके अलावा गांव के प्रत्येक घर में बाहरी लोगों को अपनी वर्षों पुरानी संस्कृत भाषा के प्रति प्रेरित करने के लिए संस्कृत में स्लोगन लिखे गए हैं। यहां विवाह-शादियों में निमंत्रण पत्र भी संस्कृत भाषा में छपवाए जाते हैं।

ढांगू-कोहलवीं गांव मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के गृह क्षेत्र बमसन में पड़ता है तथा इस गांव में से प्रत्येक घर से शिक्षा विभाग में संस्कृत का शिक्षक व विद्वान पंडित हैं जिन्हें प्रदेश के कई जिलों व देश के कई राज्यों से लोग अपने घरों में धार्मिक कार्यों व विवाह-शादियों में होने वाले अनुष्ठानों को करवाने के लिए बुलाते हैं, वहीं ढांगू-कोहलवीं गांव के डा. जगन्नाथ शर्मा ने अपने बेटे की शादी के कार्ड भी संस्कृत भाषा में छपवाए हैं, जोकि आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं।

डा. जगन्नाथ शर्मा का कहना है कि आज भी देश में विभिन्न भाषाओं में चाहे वह अंग्रेजी ही क्यों न हो संस्कृत भाषा के कुछ शब्द शामिल होते हैं तथा संस्कृत भाषा हिंदुस्तान की पहचान है क्योंकि यह भाषा रामायण व महाभारत काल से चली आ रही है तथा इसे बचाने के लिए सभी को प्रयास करने चाहिए। उन्होंने कहा कि आप चाहे किसी भी धार्मिक पुराण को या किसी भी धार्मिक अनुष्ठान की बात कर लो उसमें सिर्फ संस्कृत भाषा का ही प्रयोग होता है। उन्होंने बताया कि ढांगू-कोहलवीं गांव में सभी ग्रामीण अपनी पुरानी सभ्यता व भाषा को संजोए रखने के लिए प्रयासरत हैं तथा नई पीढ़ी भी अपने पूर्वजों के नक्शे कदम पर चल रही है।

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