सरप्राइज अटैक की आशंका, मजबूत होंगे एडवांस लैंडिंग ग्राउंड, 1962 में भी चौंकाया था

चंडीगढ़
बॉर्डर के पास इन एडवांस लैंडिंग मैदानों की आज रणनीतिक दृष्टि से बेहद जरूरत
तकनीकी युद्ध कला और हाई एल्टीट्यूट वॉर फेयर के लिए सैन्य जवान हो रहे ट्रेंड

भारत-चीन के बीच बढ़ रहे तनाव के मद्देनजर चीन से सरप्राइज अटैक की आशंका बनी हुई है, जिसे लेकर आर्मी और एयरफोर्स पूरी तरह सतर्क हैं। साथ ही ये दोनों सेनाएं अपनी सैन्य क्षमता भी बढ़ाने में भी जुटी हुई हैं।

दूसरी ओर, आर्मी और एयरफोर्स हाई एल्टीट्यूट वार फेयर के लिए अपनी तैयारियों को न केवल और अच्छे से मुकम्मल बना रही हैं, बल्कि चीन के खिलाफ तकनीकी युद्ध कला में अपनी निपुणता भी बढ़ा रही है। उधर, रक्षा विशेषज्ञों का भी मानना है कि चीन जैसा देश हमेशा सरप्राइज अटैक से ही दुश्मन पर हावी होने की कोशिश करता है।
सैन्य सूत्रों ने बताया कि रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण एलएसी पर बने एडवांस लैंडिंग ग्राउंड (एएलजी) की संख्या और ताकत दोनों बढ़ेगी। ये ऐसे मैदान हैं, जो लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) के नजदीक ही बने हुए हैं। ऐसे मैदान न केवल भारत बल्कि चीनी सेना ने भी अपने क्षेत्रों में बना रखे हैं।
युद्ध की आशंका से पहले सेनाओं को यदि संबंधित बार्डर एरिया में अपने जवानों की संख्या बढ़ानी होती है, तो एयरफोर्स के बड़े यातायात विमानों के जरिये जवानों की पलटनें इन्हीं एएलजी से बार्डर इलाकों तक पहुंचाई जाती हैं।

सूत्रों के मुताबिक मिली जानकारी
चीन ने भी एलएसी के नजदीक ही कई एडवांस लैंडिंग ग्राउंड बना रखे हैं। इतना ही नहीं एलएसी के महज 15 किलोमीटर की दूरी पर चीन एक मजबूत एयरफील्ड भी तैयार किया है। दूसरी ओर, नार्थ-ईस्ट में देखा जाए तो हमारी आर्म्ड फोर्सेस ने भी अपने एडवांस लैंडिंग ग्राउंड तैयार किए हैं।

इनमें टूटिंग, एलांग, पासीघाट, विजय नगर व मैचूका मुख्य हैं, जिन्हें सात से आठ सालों में ही पूरी तरह तैयार किया गया है। जहां ग्लोब मास्टर व सुपर हरक्यूलिस जैसे विमान भी लैंड करवाए जा सकते हैं। अब इन्हें और मजबूत बनाने पर काम चलेगा। जबकि ऐसे एएलजी की संख्या भी बढ़ेगी।

ऐसे मैदानों के जरिये अब एलएसी की दुर्गम चोटियों पर हमारी फौज की पलटन की मूवमेंट भी आसानी से हो पाएगी। उधर, चीन भी अपनी एनुअल एक्सरसाइज ‘स्ट्राइड’ के जरिये अपने सरफेस, रोड, रेलवे और एयर कनेक्टिविटी को मजबूत करने में जुटा रहता है, ताकि इसके जरिये वह भी अपनी फोर्स की मूवमेंट फोरवर्ड एरिया में जल्द से जल्द कर सके।

1962 के युद्ध में भी आग के गोलों से चीन ने चौंकाया था
एयरफोर्स के पूर्व आला अधिकारी एयर मार्शल केके नौहवार बताते हैं कि सरप्राइज अटैक प्रवृति चीन की बहुत पुरानी है। ईस्टर्न सेक्टर में सन 1962 की लड़ाई में भी चीन ने फ्लैम थ्रोवर गन (आग के गोले बरसाना वाला हथियार) के इस्तेमाल से भारतीय सेना को न केवल चौंका दिया था। बल्कि ये हथियार हमारे जवानों को थर्रा देने वाला था।

आज भले ही हमारी सैन्य क्षमता सन 1962 से कई ज्यादा एडवांस और मजबूत है। चीन के सरप्राइज अटैक की प्रवृति से चौकन्ना रहने की जरूरत है। उस समय फ्लैम थ्रोवर युद्ध में इस्तेमाल नहीं होते थे। ये उस वक्त की एडवांस तकनीक थी। आज भी चीन को साइबर, केमिकल, न्यूक्लियर व बायोलॉजिकल अटैक के मामले में कम नहीं आंका जा सकता।

मगर हमारी सेना भी इस आशंका पर गौर करते हुए खुद को इस हमलों से निपटने के लिए खुद को और मजबूत व क्षमतावान बना रही है। बात रही आमने-सामने मुठभेड़ की, वो तो बार्डर एरिया में जवानों के बीच चलती रही है। उसमें चीन के जवान भी अच्छे और हमारे भी।

 

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