
नई दिल्ली। दिल्ली विश्वविद्यालय में 90 फीसदी से अधिक अंक प्राप्त करने वालों को भी कई पॉपुलर कोर्सेज में दाखिला नहीं मिल पा रहा है, वहीं 40-45 फीसदी अंक भी दाखिले के रास्ते खोल रहे हैं। जी हां, डीयू के तमाम कॉलेजों में बीए संस्कृत ऑनर्स और हिंदी ऑनर्स ऐसे कोर्स हैं जिनमें 70 फीसदी तक पर भी एंट्री हो सकती है। संस्कृत ऑनर्स की सीटें तीसरी लिस्ट आने पर भी नहीं भर पाई है। पॉपुलर कॉलेज में तो हिंदी ऑनर्स के दाखिले बंद हो गए हैं लेकिन अब भी कुछ ऐसे कॉलेज हैं जहां पर दाखिला लेकर डीयू में पढ़ने का सपना साकार हो सकता है।
डीयू में दाखिले के लिए हिंदी ऑनर्स और संस्कृत ऑनर्स हमेशा से सबसे आसान विकल्प माने जाते रहे हैं। आमतौर पर 50 से 60 फीसदी अंक वाले छात्रों को आसानी से इनमें दाखिला मिल जाता था। लेकिन पिछले पांच सालों की बात करें तो हिंदी इस श्रेणी से बाहर निकल गया। इसका प्रमुख कारण यह रहा कि हिंदी को बाजार की मांग के अनुरूप ढालकर नया किया गया है। जिससे कॅरियर के लिहाज से विकल्प खुले हैं। पिछले कुछ सालों में हिंदी की कट ऑफ 50-60 प्रतिशत से छलांग लगाकर सीधे 80-85 फीसदी तक पहुंच गई। लेकिन संस्कृत कोर्स की कट ऑफ लिस्ट आज भी 50 से 60 प्रतिशत के दायरे में थी, जबकि तीसरी लिस्ट में यह 40 से 45 प्रतिशत तक आ गई है।
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हिंदी ऑनर्स : तीस कॉलेजों में अभी गुंजाइश
तीसरी लिस्ट तक डीयू के 30 कॉलेजों में हिंदी ऑनर्स में अब भी दाखिले की गुंजाइश है। जिसमें अदिति, एआरएसडी, भगिनी, भीमराव अंबेडकर, दौलतराम, दयाल सिंह (ईवनिंग), कालिंदी, किरोड़ीमल, लक्ष्मीबाई, माता सुंदरी, राजधानी सरीखे कॉलेज शामिल हैं। जिनमें 60 फीसदी और 70 फीसदी से थोड़ा ऊपर में दाखिला हो सकता है। वहीं कई कॉलेजों में तो लड़कियों को दो से पांच फीसदी की छूट मिलने से कट ऑफ में और गिरावट हो सकती है। दूसरी ओर संस्कृत ऑनर्स के लिए छात्रों के पास भी विकल्प ही विकल्प हैं। हंसराज, आईपी, लेडी श्रीराम, मिरांडा, वेंकटेश्वर कॉलेज में दाखिला लिया जा सकता है। गार्गी, हंसराज, आईपी, जानकी देवी, कालिंदी, कमला नेहरू, लक्ष्मीबाई जैसे कॉलेजों में संस्कृत की तीसरी कट ऑफ लिस्ट 40-45 फीसदी तक गई है। कहीं यह 50 से लेकर 60 फीसदी तक भी है। इस लिहाज से छात्रों के पास कम अंक प्रतिशत के बावजूद अभी भी डीयू के तमाम कॉलेजों में दाखिले का मौका है। विभिन्न कॉलेज प्रशासन का कहना है कि संस्कृत और हिंदी लेने में छात्रों में क्रेज थोड़ा कम होता है। हिंदी ऑनर्स की सीटें तो पॉपुलर कॉलेज में भर जाती हैं लेकिन कई जगह ऐसा नहीं हो पाता है। वहीं संस्कृत की भी सीटें पॉपुलर कॉलेजों में ही भर पाती हैं।