हिमाचल के बागवान बर्फ न गिरने पर बागीचो में कर रहे है इस तकनीक का इस्तेमाल

हिमाचल के बागवान बर्फ न गिरने पर बागीचो में कर रहे है इस तकनीक का इस्तेमाल

बारिश और बर्फबारी नहीं होने से परेशान बागवानों ने कृत्रिम बर्फ जमाकर सेब के लिए चिलिंग आवर्स पूरी करने की कवायद शुरू कर दी है। बगीचों में रात के समय पानी की फुहारों से बर्फ जमाई जा रही है। बागवानों का मानना है कि इस तकनीक से बगीचों में नमी खत्म होने की समस्या से भी निजात मिल रही है। शिमला के अलावा कुल्लू और मंडी जिले के ऐसे बागवान जिन्होंने उच्च घनत्व पौधरोपण (एचडीपी) पर बगीचे लगा रखे हैं इस तकनीक का अधिक इस्तेमाल कर रहे हैं। मौसम की मार से इस साल सेब बागवानी बुरी तरह प्रभावित हो रही है। सूखे के चलते बगीचों में तौलिए नहीं बन पा रहे। नए पौधे लगाने का काम भी पूरी तरह ठप है।

सेब की फसल के लिए सर्दियों में लगभग 1,100 से 1,600 घंटे चिलिंग ऑवर्स की जरूरत रहती है। जिसमें तापमान जीरो से 7 डिग्री के बीच रहना जरूरी है। बर्फबारी होने पर चिलिंग आवर्स आसानी से पूरे हो जाते हैं। हालांकि कृत्रिम तकनीक को लेकर कोई वैज्ञानिक खोज नहीं हुई है। सर्दियों में सेब के पौधे सुप्त अवस्था में रहते हैं और गर्मियां शुरू होते ही पौधों में फ्लावरिंग होती है। अगर चिलिंग ऑवर्स पूरे न हो तो इसका असर फ्लावरिंग पर पड़ता है। फ्लावरिंग कम और देरी से हो सकती है, पत्तियों का विकास भी प्रभावित होता है। जिसका सीधा असर फसल पर पड़ता है। बर्फबारी होने पर प्राकृतिक रूप से बागीचों में बीमारियां पैदा करने वाले कीट खत्म हो जाते हैं।

प्रोग्रेसिव ग्रोवर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष लोकेंद्र सिंह विष्ट का कहना है कि रात में पानी का छिड़काव करने से पानी जम जाता है और तापमान में 2 से 3 डिग्री गिरावट आ जाती है, जो फायदेमंद रहती है। प्रगतिशील बागवान कमलेंद्र सिंह परिहार का कहना है कि चिलिंग के अलावा यह तकनीक बागीचों में नमी की कमी को दूर करने में भी सहायक है। 

कृत्रिम बर्फ जमा कर चिलिंग आवर्स पूरे करने को लेकर कोई वैज्ञानिक परीक्षण नहीं हुआ है, हालांकि बड़े पैमाने पर लोग इस तरह के प्रयोग कर रहे हैं। यह विधि माश्चर स्ट्रेस को कम करने के लिए कारगर है क्योंकि जमा हुआ पानी धीरे धीरे पिघल कर नमी बढ़ाता है।– डाॅ. देशराज, सेवानिवृत संयुक्त निदेशक, बागवानी विभाग

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