मामले के अनुसार 23 जुलाई 2002 को नहारण स्कूल में विद्या उपासक की भर्ती के लिए चयन समिति ने 23 प्रतिभागियों के साक्षात्कार लिए व परिणाम भी उसी दिन घोषित किया गया। प्रतिवादी मीरा देवी का इस पद के लिए चयन कर लिया गया। सूचना का अधिकार आने के बाद प्रार्थी दिला राम ने चयन का रिकॉर्ड मांगा। दस्तावेज मिलने पर प्रार्थी ने पाया कि रिजल्ट शीट में उसके व चयनित अभ्यर्थी के अंकों में छेड़छाड़ की गई है। प्रार्थी ने मामले की जांच के लिए 28 फरवरी 2009 को डीजीपी के समक्ष प्रतिवेदन किया। कोई कार्रवाई न होने पर 29 जून 2009 को उसने शिक्षा सचिव के समक्ष जांच की गुहार लगाई। एसपी मंडी ने मामले की जांच कर 18 अगस्त 2009 को जांच रिपोर्ट सौंपी जिसमें कटिंग की बात तो सामने आई लेकिन कटिंग को केवल गलती सुधार का मामला बता दिया गया।
प्रार्थी ने जांच से असंतुष्ट होकर 28 जनवरी 2010 को फिर से प्रधान सचिव सतर्कता, डीजीपी व प्रधान सचिव शिक्षा को जांच के लिए प्रतिवेदन दिया। जब इस पर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई तो प्रार्थी को हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने पर मजबूर होना पड़ा। कोर्ट ने मामले का रिकॉर्ड देखने पर पाया कि रिजल्ट शीट में प्रार्थी व चयनित अभ्यर्थी मीरा के अंकों में कटिंग व टेंपरिंग पाई और कहा कि यह केवल गलती सुधार का मामला नहीं है। दस्तावेज की छेड़छाड़ से यह प्रतीत होता है कि चयन समिति ने चयन में गड़बड़ी की और प्रतिवादी को गलत ढंग से नियुक्त कर दिया। कोर्ट ने मीरा देवी की नियुक्ति को खारिज करते हुए कहा कि बेशक वह अब नियमित हो चुकी हैं लेकिन जब उसकी नियुक्ति शुरुआत में ही गैरकानूनी है तो उसे पद पर बने रहने का कोई अधिकार नहीं है।