बेवफाई साबित करने का शाॅर्टकट नहीं बच्चे की डीएनए जांच, इससे निजता का अधिकार प्रभावित : अदालत

बेवफाई साबित करने का शाॅर्टकट नहीं बच्चे की डीएनए जांच, इससे निजता का अधिकार प्रभावित : अदालत
नई दिल्ली। 

जस्टिस वी रामासुब्रमण्यम और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि केवल इसलिए कि किसी एक पक्ष ने पितृत्व के तथ्य पर विवाद किया है, इसका मतलब यह नहीं है कि विवाद को जल्दी हल करने के लिए अदालत को डीएनए परीक्षण या ऐसे अन्य परीक्षण का निर्देश देना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि बेवफाई के आरोपों से जुड़े वैवाहिक विवादों में नाबालिग बच्चे के डीएनए टेस्ट का आदेश नियमित रूप से नहीं दिया जा सकता है। क्योंकि इससे बच्चे को आघात लग सकता है और निजता का अधिकार प्रभावित हो सकता है।

जस्टिस वी रामासुब्रमण्यम और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि केवल इसलिए कि किसी एक पक्ष ने पितृत्व के तथ्य पर विवाद किया है, इसका मतलब यह नहीं है कि विवाद को जल्दी हल करने के लिए अदालत को डीएनए परीक्षण या ऐसे अन्य परीक्षण का निर्देश देना चाहिए। पक्षकारों को पितृत्व के तथ्य को साबित करने या खारिज करने के लिए साक्ष्य को पेश करने को निर्देशित किया जाना चाहिए। शीर्ष अदालत ने बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ महिला की याचिका को स्वीकार कर लिया। हाईकोर्ट ने तलाक के मामले में महिला के अवैध संबंध के आरोप वाली पति की याचिका पर उसके दो में से एक बच्चे का डीएनए टेस्ट कराने के परिवार अदालत के फैसले को बरकरार रखा था।

पति में पिता बनने की संभावना शून्य थी
उक्त मामले में पति ने एक निजी प्रयोगशाला में डीएनए परीक्षण कराया था, जिसमें पाया गया था कि उसमें पिता बनने की संभावना शून्य थी। पीठ ने इंगित किया कि वह यह स्वीकार करने में असमर्थ है कि डीएनए परीक्षण ही एकमात्र तरीका होगा जिससे मामले की सच्चाई का पता लग सकता है। जबकि पति ने स्पष्ट रूप से दावा किया है कि उसके पास कॉल रिकॉर्डिंग, ट्रांसक्रिप्ट (प्रतिलेख) और अन्य सामग्री है जिनके जरिये हो सकता है महिला की बेवफाई साबित हो सके।

Related posts